भाजपा को अहंकार हो गया है या आत्मविश्वास, हरियाणा विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ न करवा कर खट्टर और भाजपा ने विपक्ष को संभलने का दिया एक बड़ा मौका!
राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज़,
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भाजपा को आत्मविश्वास है या अहंकार, हरियाणा विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ न करवा कर खट्टर और भाजपा ने विपक्ष को संभलने का दिया एक बड़ा मौका!
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चंडीगढ़ :- आज किसी भी प्रदेश की नेता को लोकसभा चुनाव के परिणामों की कोई चिंता नहीं क्योंकि वह तो सिर्फ अपना हित देखने और साधने के लिए विधानसभा चुनाव की प्रतीक्षा कर रहे हैं। हरियाणा के सभी विपक्षी दलों के प्रदेश अध्यक्ष इस बात की खुशी मना रहे हैं कि चलो लोकसभा के साथ हरियाणा विधानसभा के चुनाव नहीं हुए। क्योंकि यदि लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव हो जाते तो राजकुमार सैनी, डॉ अशोक तवर, इनेलो पार्टी और दुष्यंत चौटाला जैसे नेताओ को तैयारी करने का मौका कैसे मिलता। हरियाणा विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ न होने की घोषणा के साथ विपक्षी पार्टियों ने राहत की सांस ली है।
हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर चाहे यह कहें कि भाजपा में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ करवाएं जाने की हिम्मत नहीं है। परन्तु हकीकत यह है कि भाजपा ने लोकसभा के साथ हरियाणा विधानसभा चुनाव न करवा कर सभी विपक्षी दलों, विशेष कर कांग्रेस को सम्भलने का एक बड़ा मौका दिया है। हालांकि कांग्रेस पार्टी के नेता बार बार यह कहते रहे हैं कि पार्टी चुनावों के लिए तैयार है। पर ये सभी जानते हैं कि कांग्रेस को कितने बड़े आंतरिक कलह और बिखराव का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी का दुर्भागय है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव सामने हैं और कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता अपने प्रदेश अध्यक्ष को हटाने में लगे हुए हैं। कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा पार्टी का या खुद का जनाधार बढ़ाने में ताकत लगाने की बजाए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को हटाने में लगा रहे हैं। ऐसा करीब साढ़े चार साल से किया जा रहा है। पार्टी में आंतरिक कलह अब तो सडक़ पर आ चुका है। हालांकि कांग्रेस आलाकमान ने गुलामनबी आजाद को हरियाणा का प्रभारी बना कर कलह और मतभेद खत्म करने का प्रयास किया था। पर आलाकमान का यह प्रयास कामयाब नहीं हुआ। अब लोकसभा चुनाव आ गए हैं और अभी भी कांग्रेसी नेता टिकट के लिए जोर लगाने की बजाए प्रदेश अध्यक्ष को हटाने में लगे हुए हैं। हालात कांग्रेस की यह है कि लोकसभा की दस सीटों में से रोहतक सीट को छोड़ कर कहीं से कोई जीताऊ प्रत्याशी नहीं है। प्रत्याशियों के नामों के केवल कयास लगाए जा रहे हैं। लग रहा है कि कांग्रेस ने जींद उपचुनाव की हार से कोई सबक नहीं लिया है। दूसरी ओर भाजपा पूरी तरह से चुनाव के लिए तैयार है। बताया गया है कि भाजपा ने हरियाणा की दस लोकसभा सीटों के लिए हर क्षेत्र से तीन-तीन प्रत्याशियों के नामों का पैनल तैयार किया हुआ है। भाजपा चुनाव जीतने के लिए अपना होम वर्क कर रही है। एक ओर जंहा कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम किया जा रहा है तो दूसरी तरफ चुनाव जीतने की रणनीति बनाई जा रही है। पांच नगर निगम के चेयरमैन का चुनाव और जींद का उप चुनाव जीतने के बाद भाजपा के कार्यकर्ताओं से नाराजगी स्वत: ही दूर हो गई लगती है। भाजपा के लिए कार्यकर्ताओं की नाराजगी अब कोई मुद्दा नहीं रह गया है। ऐसे में भाजपा आलाकमान द्वारा हरियाणा विधानसभा के चुनाव समय से पहले लोकसभा के साथ न करवाए जाने का अर्थ विपक्ष को सम्भालने का एक बड़ा अवसर दिए जाने के रूप में देखा जा सकता है। भाजपा के उत्साह और आत्म विश्वास की चर्चाकारों में जम कर बहस हो रही है। कहा यह भी जा रहा है कि भाजपा का हरियाणा विधानसभा में पूर्ण बहुमत लेना अब लक्ष्य नहीं रहा है। अब भाजपा विधानसभा की 90 सीटों में से 70 का आंकड़ा पार करना चाहती है। रोहतक में 9 मार्च को हुई पार्टी की प्रदेश कार्य समिति बैठक विस्तारिक में मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा है कि अब माहौल अच्छा है, इसलिए अटकलें लगाई जा रही हैं कि विधानसभा चुनाव साथ करवाए जायेंगे। पर सभी विश्वास करें कि चार महीनें बाद माहौल इससे भी अच्छा होगा। इसी बैठक में मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री बीरेन्द्र सिंह की मुलाकात को भी सुनाया। उन्होने कहा कि कुछ समय पहले बीरेन्द्र सिंह उनके पास आए थे और कहा था कि भाजपा को दस में से लोकसभा की दो सीटें मिलेगी। इसके करीब दो सप्ताह बाद उन्होने कहा कि भाजपा को अब पांच सीटें मिलेंगी। पर अब वें बीरेन्द्र सिंह से कह रहे हैं कि भाजपा हरियाणा में लोकसभा की सभी दसों सीटें जीतेगी। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि क्या यह मुख्यमंत्री का अहंकार है या अपने किए कार्यों पर भरोसा! इसका परिणाम तो आने वाले लोकसभा चुनाव में ही तय हो जाएगा।