अमेठी, रायबरेली से गांधी परिवार के चुनाव लड़ने या न लड़ने को लेकर क्या है वहाँ के लोगो की सोच, क्या कांग्रेस जीत पाएगी दोनो सीटे*
राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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अमेठी, रायबरेली से गांधी परिवार के चुनाव लड़ने या न लड़ने को लेकर क्या है वहाँ के लोगो की सोच, क्या कांग्रेस जीत पाएगी दोनो सीटे*
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दिल्ली/चंडीगढ़ ;- पिछले कुछ दशकों से गांधी-नेहरू परिवार के सदस्यों ने उत्तर प्रदेश के अमेठी और रायबरेली की सांसदी संभाली है. उसे परियोजनाएं देकर अपना गढ़ बनाया और लोगों से एक गहरा रिश्ता कायम किया.
लेकिन 2019 में जब भाजपा की स्मृति ईरानी ने अमेठी से लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी को हराया तब से राहुल गांधी केवल दो बार अमेठी आए.
अब रायबरेली से भी सोनिया गाँधी स्वास्थ्य कारणों की वजह से इस साल चुनाव नहीं लड़ेंगी. 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास सिर्फ रायबरेली से सोनिया गांधी सांसद हैं, और 403 विधानसभा सीटों में से सिर्फ दो विधायक हैं.
इन आंकड़ों में नज़र आ रही कांग्रेस पार्टी की कमज़ोरी से सवाल ये उठता है कि गाँधी परिवार का गढ़ माने जाने वाले अमेठी और रायबरेली से क्या गाँधी परिवार का कोई सदस्य 2024 में सांसद चुना जाएगा या नहीं? हमने अमेठी और रायबरेली के लोगों और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से यह जानने की कोशिश की कि आखिरकार इसकी कितनी सम्भावना है?
19 फरवरी को जब राहुल गाँधी अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ लेकर अमेठी पहुंचे तो उन्होंने कहा, “अमेठी आया हूँ, प्यार का रिश्ता है, मोहब्बत का रिश्ता है, इसके लिए आप सब को, दिल से धन्यवाद.”
ऐसा ही रिश्ता 2008 में राहुल गांधी ने अमेठी से एक दलित महिला सुनीता कोरी के परिवार से भी बनाया था. तब उन्होंने उनके घर में खाना खाया था और रात उनके परिवार के साथ कच्चे घर में गुज़ारी थी।
सुनीता को लगा की राहुल गांधी के साथ उनके परिवार का एक गहरा रिश्ता कायम हो गया है. वो कहती हैं, “हम लोगों को बहुत अच्छा लगा, अभी भी अच्छा लगता है.”
बाद में सुनीता कोरी का घर अचानक आग लगने से जल गया, साढ़े तीन साल बाद उनके पति मदन लाला को कांग्रेस की दी गई नौकरी से निकाल दिया गया और सुनीता और उनके पति नरेगा मज़दूरी करने लगे.
सुनीता कहती हैं, “हम किसी तरह अपने बच्चे पालते थे. लेकिन हमारे भाई (राहुल गाँधी) ने कभी मुड़ कर नहीं देखा. बहन के हाथ से खाना खाए थे तो वो मुड़ कर भी देख सकते थे. लेकिन आज तक नहीं देखे.”
यह कह कर सुनीता रोने लगती हैं।हम किसी तरह अपने बच्चे पालते थे. लेकिन हमारे भाई (राहुल गाँधी) ने कभी मुड़ कर नहीं देखा. बहन के हाथ से खाना खाए थे तो वो मुड़ कर भी देख सकते थे. लेकिन आज तक नहीं देखे.
राहुल गाँधी जब सुनीता कोरी के घर गए थे तब वो ख़बर अख़बारों के पहले पन्ने की सुर्खी बनी थी. वहीं मायावती ने तब राहुल पर दलितों के साथ ढोंग करने का आरोप लगाया.
अब सुनीता कोरी अमेठी के अपने गांव को छोड़ कर रायबरेली के बछरावां में किराए के कमरे में रहती हैं. उनके पति मदन लाल एक सीमेंट फैक्ट्री में 15 हज़ार रुपये की नौकरी करते हैं.
*सुनीता कहती हैं, “हम ग़रीब ज़रूर हैं, पर दिल से नहीं.”*
तो क्या सुनीता कोरी चाहती हैं कि राहुल गाँधी अमेठी से फिर से चुनाव लड़ें? इस पर सुनीता कहती हैं, “हम चाहते हैं कि हमारा भाई लड़े, हम भी सहयोग करेंगे. जो हमारी हिम्मत होगी हम उनके लिए उतना करेंगे, वो भले ही बहन को भूल गए लेकिन भाई को हम नहीं भूल पाते हैं.”
इस चुनावी माहौल के बारे में सुनीता कोरी कहती हैं, “बस जब वोट आ जाता है तब सभी लोग पूछते हैं, नहीं तो कोई पूछने वाला नहीं है.”55 साल के राम खेलावन चौहान अमेठी में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के सामने पान की दुकान चलाते हैं. इस फैक्ट्री को 1982 में अमेठी से सांसद रहे राजीव गांधी ने शुरू करवाया था। राम खेलावन कहते हैं, “राजीव गांधी ने फैक्ट्री लगवाई, तो हम लोगों ने अपनी दुकान डाल दी. दो पैसा कमा के इसी के सहारे खा रहे हैं.”
जिस दिन हम राम खेलावन से मिले उसी दिन राहुल गाँधी अमेठी में भारत जोड़ो यात्रा कर रहे थे. 2019 में स्मृति इरानी से 50 हज़ार से ज़्यादा वोटों से चुनाव हारने के बाद राहुल गाँधी 2022 के विधान सभा चुनाव के प्रचार में आए थे और फिर उसके दो साल बाद राहुल अमेठी लौट रहे हैं।
दो-दो साल राहुल गांधी के अमेठी नहीं आने को लेकर राम खेलावन चौहान कहते हैं, “चिंताजनक बात है. साल, दो साल, तीन साल बीत जाएगा तो आहिस्ता आहिस्ता आदमी भूल जाएगा ना? आज यहाँ आ नहीं रहे हैं, मुलाकात हो नहीं रही है, समस्या आपको कुछ बताई नहीं जाएगी, तो आप जानेंगे कैसे की पब्लिक की समस्या क्या है? जब समस्या ही नहीं जानेंगे तो क्या हिसाब किताब बनाएंगे?”
लेकिन अमेठी की जिस एचएएल की फैक्ट्री को वो गांधी परिवार की देन मानते हैं, उसके ठीक सामने दुकान लगाते हैं, तो वहां वो राहुल गांधी को लेकर ऐसा कैसे कह रहे हैं? इस पर राम खेलावन कहते हैं, “ये सब तो ठीक है, लेकिन अगर आप चक्कर लगाते रहे तो याददाश्त बनी रहेगी.”राम खेलावन चौहान के ठीक बगल में ओंकार नाथ पांडेय की छोटी सी परचून की दुकान है. वो भी एचएएल की फैक्ट्री का श्रेय राजीव गांधी को देते हैं। वो अपने आप को कांग्रेस का पुराना कार्यकर्ता बताते हुए पिछले चुनाव में भाजपा को वोट देने के पीछे अपनी मजबूरी समझाते हुए कहते हैं, “हमारे परिवार वाले भाजपा को वोट देते थे लेकिन हम कांग्रेस के कार्यकर्ता थे तो उन्हें वोट देते थे. लेकिन अब कोई पूछता नहीं है तो हम क्या करें. पांच साल से कोई पूछा नहीं. बूथ स्तर तक का संगठन है लेकिन निष्क्रिय है. जो ऊंचे पद पर हैं वो नीचे वाले को महत्व नहीं देते हैं.”
ओंकार नाथ मानते हैं कि भाजपा के शासनकाल में अमेठी की सड़कें सुधर गई हैं और, “विकास का काम तेज़ हुआ है, पहले गड्ढे थे लेकिन अब सड़क बनी. भाजपा का विकास क्षेत्र के लिए सीमित नहीं था. उनके (गाँधी परिवार के) विकास कार्य सिर्फ उनके अमेठी और रायबरेली तक सीमित थे. और प्रदेश में काम शून्य थे.”
तो क्या राहुल गाँधी को चुनाव लड़ना चाहिए? क्या वो अमेठी से फिर जीत सकते हैं? ओंकार नाथ कहते हैं, “जीत निश्चित नहीं है, चुनाव लड़ें, तो अब भी राजीव गांधी का प्रभाव है, लोग वोट देते हैं. जीतना हारना तो बाद का काम है.”
*हम लोग भाजपा से नाराज़ हैं’*
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड से सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर 1982 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 350 बेड के संजय गांधी हॉस्पिटल का शिलान्यास किया था। इस अस्पताल को सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाला एक ट्रस्ट चलाता है. पिछले साल अस्पताल में एक मरीज़ की लापरवाही से मौत के आरोप के बाद 18 सितम्बर को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अस्पताल का लाइसेंस ससपेंड कर दिया जिससे चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाएं रुक गईं।
2008 में रायबरेली में रेल कोच फैक्ट्री के लिए ज़मीन मिलने में अड़चनों से गुस्सा होकर सोनिया गाँधी ने मायावती सरकार को रायबरेली से ललकारते हुए कहा था कि वो विकास के लिए जेल जाने के लिए तैयार हैं. लेकिन जब अमेठी कई दिनों तक बंद रहा तो गांधी परिवार के तरफ से कोई बयान नहीं आया।
बाद में हाई कोर्ट ने सुविधाएं बहाल करने के आदेश दिए, अस्पताल खुला, लेकिन उस पर अपने गुज़ारे के लिए निर्भर लोग अब भी भाजपा से ख़फ़ा हैं.
दवाई की दुकान चलाने वाले अशोक कुमार मिश्र कहते हैं, “यही एक ऑप्शन था अमेठी में, और कहाँ है? हम लोग भाजपा से ही नाराज़ हैं. उन्होंने हमको कुछ दिया नहीं है. अगर भाजपा कह रही है कि चार किलो अनाज दे रहे हैं तो हमारी ज़मीन से चालीस किलो चारा भी ले रहे हैं. छुट्टा जानवर सारे खेत चरे जा रहे हैं.”जब जनता से मिलेंगे नहीं, तो हारेंगे ही’
अशोक कुमार मिश्रा की दुकान के पास अस्पताल के सामने रहने वाले हरकेश पांडेय कहते हैं कि अमेठी से अगला चुनाव किसी गाँधी को ही लड़ना चाहिए. वो कहते हैं, “यह आते हैं तो हम लोग पीछे भूल जाएंगे. वोट तो पिछली बार बीजेपी को दिए. लेकिन ये लोग चुनाव में आए तो हम गाँधी परिवार के साथ हैं.”
हरकेश पांडेय के बगल में बैठे दुकानदार ओम प्रकाश कहते हैं, “राहुल गांधी आते हैं, लेकिन जनता से मिलते नहीं हैं. यहाँ रुकते नहीं हैं. अंदर आएंगे और वहीं से निकल जाते हैं. अब पता नहीं क्यों नहीं रुकते हैं. यहीं पर इतनी औरतें खड़ी थीं, रुके नहीं, सीधे निकल गए. रुकना तो चाहिए.”
ओम प्रकाश से यह पूछने पर कि उन्हें राहुल गांधी के अमेठी से हारने के कारण क्या लगते हैं? इस पर वो कहते हैं, “जब जनता से मिलेंगे नहीं तो हारेंगे ही.”
वो हमारे अमेठी का बेटा है’
अमेठी के जायस में राहुल गांधी की जनसभा में कांग्रेस की महिला कार्यकर्ता फूलमती भी भाषण सुनने पहुँचीं। अमेठी से हारने के बावजूद वो राहुल गाँधी को वहां से चुनाव लड़ते देखना चाहती हैं और पूछती हैं, “एक बार फसल न हो तो क्या खेती बोना छोड़ दिया जाए? खेती बोना नहीं छोड़ा जाएगा! खेती को फिर से उगाना चाहिए. वो हमारे अमेठी का बेटा है.”
फूलमती का बयान सुन रायबरेली से आईं कांग्रेस की महिला ब्लॉक प्रमुख गुड़िया कहती हैं, “हम रायबरेली से अपनी प्रियंका गाँधी जी और अमेठी से राहुल गाँधी जी को सांसद देखना चाहते हैं.”
शरीर कांग्रेस के लिए समर्पित है, लेकिन…
77 साल के राम सेवक इंदिरा गांधी के समय से रायबरेली में कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं. वो रायबरेली से पार्टी के महासचिव भी रह चुके हैं।
इंदिरा गांधी के दौर की रायबरेली की तुलना मौजूदा सूबे से करते हुए वो कहते हैं, “रायबरेली के लोगों से इंदिरा गांधी के पारिवारिक रिश्ते थे. वो व्यक्तिगत रूप से कई लोगों को जानती पहचानती थीं.”
*तो क्या गांधी परिवार से वो रिश्ता बदल चुका है?*
इस पर राम सेवक कहते हैं, “भावनात्मक लगाव तो उनका भी है, और हमारा भी. लेकिन हम लोगों का उस तरह का मिलना जुलना, हमारी निजी ज़िन्दगी की जानकारी का उनके पास होना, या हमारी कोई ज़रूरत है तो हम मिल लें, या बात कर लें, यह गुंजाइश नहीं है. आज हमारा हाल लेने वाला कोई नहीं है.”
तो क्या ऐसा अधिकतर पुराने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के साथ हो रहा है? पुराने पार्टी कार्यकर्ताओं के बारे में राम सेवक कहते हैं, “अब वो स्थितियां नहीं हैं. ना इतना स्वाभिमान है, ना इतना आत्मसम्मान है, ना रीढ़ की हड्डी बची है किसी के पास.”
तो क्या इसका एहसास गांधी परिवार को नहीं है? राम सेवक कहते हैं, “नहीं, इनका लालन पालन इन परिस्थितियों में हुआ ही नहीं है. इनको कैसे अहसास होगा? अगर मैं साइकिल से चला हूँ तो साइकिल चलाने का दर्द मुझे है, मैं दूसरों के ऐसे दर्द को समझ सकता हूँ. मेरे बेटे कार से चल रहे हैं तो वो साइकिल के बारे में क्या जानें? इनको इस बारे में सोचना ही चाहिए, समय देना ही चाहिए. और अगर नहीं दे रहे हैं तो यह कोई समझदारी का निर्णय नहीं है.” अंत में रामसेवक कहते हैं, “यह शरीर कांग्रेस के लिए समर्पित है. मेरे सामर्थ्य में जो कुछ भी है, वो उन्हीं का है.
*”विरोधी पार्टियां भी उकसाती हैं कि आपके सांसद नहीं आते हैं’।*
प्रदीप कुमार वर्मा रायबरेली के रसूलपुर गुंडा के ग्राम प्रधान हैं. हम रसूलपुर गुंडा में उस दिन पहुंचे जब राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा रायबरेली पहुंच रही थी। लेकिन प्रदीप कुमार वर्मा कहते हैं कि, “राहुल गाँधी आ रहे हैं इसकी जानकारी प्रचार मीडिया के लोगों को भले ही पता हो ग्रामीण जनता को इस बात की बिल्कुल ख़बर नहीं थी कि राहुल गांधी आ रहे हैं.”
वो कहते हैं, “संगठन की कमी पूरे शहर में दिखाई पड़ती है. अगर संगठन मज़बूत स्थिति में रहे तो उत्तर प्रदेश की स्थिति कुछ और हो. लेकिन रायबरेली और अमेठी जैसी जगह में हम कमज़ोर हो रहे हैं, तो निश्चित तौर पर संगठन का मुद्दा है.”
रसूलपुर गुंडा गांव के निवासी राम कृपाल चौधरी को गांधी परिवार की कमी खल रही है.
राम कृपाल चौधरी कहते हैं, “जनता स्वतः गांधी परिवार को चाहती है. और आज भी आने वाले चुनाव में भी प्रियंका, राहुल में से कोई भी रायबरेली से आ जाए तो लोग हवा में चुनाव जीतेंगे. सोनिया जी सांसद बनने के बाद नहीं आई हैं लेकिन प्रियंका जी और राहुल जी को आना चाहिए था. नहीं आए. क्या परिस्थितियां रहीं वो अलग चीज़ है. लेकिन आना चाहिए. पार्टियां भी उकसाती हैं कि आपके सांसद नहीं आते हैं.”
राम कृपाल चौधरी कहते हैं कि अब भी देर नहीं हुई है. वो कहते हैं, “रायबरेली में जीतना चाहते हैं तो डोर-टू-डोर जन जागरण की आवश्यकता है. लोग जुड़ना चाहते हैं, उनके प्रति एक लगाव है.” अब भी देर नहीं हुई है. वे कहते हैं, “रायबरेली में जीतना चाहते हैं तो डोर-टू-डोर जन जागरण की आवश्यकता है. लोग जुड़ना चाहते हैं, उनके प्रति एक लगाव है। रसूलपुर गुंडा के कमलाकर वर्मा बताते हैं कि उनके गाँव का पोलिंग बूथ पिछले चुनावों में नंबर एक पर था, और चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के लिए सोनिया गांधी ने अपनी सांसद निधि से गाँव के विकास के लिए 10 लाख रुपये भी दिए थे।
कमलाकर वर्मा कहते हैं, “पार्टी के प्रति समर्पित होने वाले वर्कर्स को जब आप नज़रअंदाज़ करेंगे तो संगठन इतना मज़बूत नहीं हो पाएगा जितना आप चाहते हैं. पार्टी का जो मौजूदा सेटअप है उसे ज़मीन पर उतरने की ज़रूरत है.”
सोनिया गाँधी स्वास्थ्य कारणों से रायबरेली नहीं आ पा रही थीं लेकिन कमलाकर वर्मा कहते हैं, “माना की मैडम की दिक्कतें हैं, उम्र का फैक्टर है, बीमारी है, लेकिन उसके बाद किसी न किसी को तो विज़िट करना चाहिए. गाँधी फैमिली वाला कोई आता है तो उसकी बात अलग ही है।