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नेपाल में सियासी संग्राम शुरू, पार्टी से निकाले गए प्रधानमंत्री केपी ओली, कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता भी रद्द*

राणा ओबराय
राष्ट्रीय ख़ोज/भारतीय न्यूज,
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नेपाल में सियासी संग्राम शुरू, पार्टी से निकाले गए प्रधानमंत्री केपी ओली, कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता भी रद्द*
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काठमांडू ;- नेपाल के कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी से बेदखल कर दिया गया है। उन्हें स्प्लिन्टर ग्रुप (अलग हुए दल) की सेंट्रल कमिटी मीटिंग ने पार्टी से बाहर निकाला है। इस खबर की पुष्टि करते हुए स्प्लिन्टर ग्रुप के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने कहा है, उनकी सदस्यता खत्म कर दी गई है। यह फैसला पीएम ओली और उनके समर्थकों की गैरमौजूदगी में हुआ है।
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के इस बैठक में ओली गुट के नेता शामिल नहीं हुए थे। ऐसे में प्रचंड समर्थक नेताओं के इस फैसले को पीएम ओली मानने से इनकार कर सकते हैं। पार्टी में विपक्षी धड़े का नेतृत्व कर रहे पुष्प कमल दहल प्रचंड पिछले कई महीने से ओली के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। ऐसे में पहले से ही आशंका जताई जा रही थी कि राजनीतिक अस्थिरता से दोराहे पर खड़ी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी कभी न कभी दो धड़ों में जरूर बंटेगी। यहां संसद भंग होने के बाद से ही राजनीतिक उथल पुथल तेज हो गई है। एक ओर नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञावली ने कहा है कि वह देश की आंतरिक समस्या में बाहरी हस्तक्षेप को मंजूरी नहीं देंगे, तो वहीं दूसरी ओर चीन इस मामले में हस्तक्षेप की पूरी कोशिश कर रहा है।देश की संसद को भंग कर दिया था
विदेश मंत्री ने ये भी कहा था कि नेपाल अपनी समस्याएं सुलझाने में खुद सक्षम है और इसके लिए उसे किसी बाहरी दखल की जरूरत नहीं है। केपी शर्मा ओली ने अचानक देश की संसद को भंग कर दिया था। जिसके बाद चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय विभाग के उपमंत्री के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल काठमांडू भेजा गया था। ताकि यहां चल रही समस्याओं को सुलझाया जा सके।

ओली प्रचंड में कैसे शुरू हुआ मतभेद,
दोनों दलों के बीच 2020 के मध्य से मतभेद तब गहराने शुरू हुए जब प्रचंड ने ओली पर बिना पार्टी के सलाह के सरकार को चलाने का आरोप लगाया। जिसके बाद दोनों पत्रं के बीच कई दौर की हुई बैठक के बाद समझौता हो गया। लेकिन, पार्टी में यह शांति ज्यादा दिनों तक बनी नहीं रही और मंत्रिमंडल के बंटवारे को लेकर फिर से खींचतान शुरू हो गई। ओली ने अक्टूबर में बिना प्रचंड की सहमति के अपनी कैबिनेट में फेरबदल किया था। उन्होंने पार्टी के अंदर और बाहर की कई समितियों में अन्य नेताओं से बातचीत किए बगैर ही कई लोगों को नियुक्त किया था। दोनों नेताओं के बीच मंत्रिमंडल में पदों के अलावा, राजदूतों और विभिन्न संवैधानिक और अन्य पदों पर नियुक्ति को लेकर दोनों गुटों के बीच सहमति नहीं बनी थी।

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