हार की जिम्मेदारी लेने को कोई भी कांग्रेसी नही है तैयार, हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष पद की है मारामार*
राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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हार की जिम्मेदारी लेने को कोई भी कांग्रेसी नही है तैयार, हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष पद की है मारामार*
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चंडीगड़ ;- हरियाणा कांग्रेस की शान और मान को खत्म करने पर लगे हुए हैं प्रदेश के दिग्गज नेता! लोकसभा की सभी सीटें हारने के बाद भी अभी तक प्रदेश स्तरीय नेता कुंभकरण की नींद से नहीं जागे! आपस की लड़ाई में इतना उलझे हुए हैं कि उनको 50 दिनों के बाद हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव की भी कोई चिंता नहीं है! यदि हरियाणा प्रदेश में कांग्रेस विधानसभा चुनाव ही नहीं जीत पाएगी तो मुख्यमंत्री कैसे बनेगा! और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी का क्या फायदा होगा! इस पर सभी नेताओं को मंथन और चिंतन करना चाहिए। हरियाणा प्रदेश और देश के राजनीतिक गलियारों में इन दिनों केवल एक ही प्रश्न बना हुआ है कि वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस को आखिर कौन लाकर देगा संजीवनी ? बेशक पार्टी की हार की वजह से राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफा देकर सभी कांग्रेसियों को नई राह दिखाई हैं लेकिन हरियाणा में कांग्रेस का बंटाधार होने के बाद भी कोई जिम्मेवारी लेने को तैयार नहीं है। लोकसभा चुनाव की आहट होते ही केंद्र शासित भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जहां पूरे देश में ठोस रणनीति बनाकर बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया था वहां हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी पूरे चरम पर थी हालांकि हरियाणा कांग्रेस की गुटबाजी खत्म करवाने में हरियाणा के दो पूर्व प्रदेश प्रभारी डॉ. शकील अहमद और मध्यप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ कोई खास चमत्कार नहीं दिखा सके थे। लेकिन हरियाणा के वर्तमान प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने अथक प्रयासों से जब तक हरियाणा कांग्रेस के शीर्ष पदाधिकारियों को एक बस में सवार होकर हरियाणा की परिक्रमा करने को तैयार किया तब तक मोदी की चुनावी बुलेट ट्रेन पूरे देश के साथ साथ हरियाणा में भी घूम चुकी थी। चुनावी नतीजे के तौर पर जहां भाजपा को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के संयुक्त नेतृत्व में प्रचंड बहुमत से जीत हासिल हुई वहां कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। हरियाणा कांग्रेस के सभी बड़े दिग्गज नेताओं को शर्मनाक हार का मुंह देखना पड़ा केवल रोहतक से पूर्व सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने महाभारत के अभिमन्यु की तरह अंतिम क्षण तक शानदार मुकाबला किया और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भी चुनाव हारने के बावजूद अपना दमखम दिखाने में पूरी तरह कामयाब रहे। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को अम्बाला से, पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसी लाल की पौत्री श्रुति चौधरी काे भिवानी से, पूर्व मंत्री अवतार सिंह भडाना को फरीदाबाद से, दिग्गज नेता कैप्टन अजय यादव को गुरुग्राम से, करनाल के पूर्व सांसद पंडित चिरंजीलाल शर्मा के सुपुत्र एवं विधानसभा के पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा को करनाल से करारी हार झेलनी पड़ी थी। ये सभी दिग्गज नेता 3 लाख से भी अधिक मतों के अंतर से पराजित हुए। हरियाणा कांग्रेस के वर्तमान प्रधान डॉ. अशोक तंवर को भी सिरसा से भाजपा की महिला उम्मीदवार के हाथों जबरदस्त करारी हार झेलनी पड़ी। कुरूक्षेत्र के चुनावी मैदान में कांग्रेस के दिग्गज नेता चौधरी निर्मल सिंह विपरित परिस्थितयों के बावजूद 3 लाख से अधिक वोट बटोरने में सफल रहे। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल बिश्नोई के पौत्र और कुलदीप बिश्नोई के पुत्र भव्य बिश्नोई को मात्र 1,84,369 वोट ही मिल पाए। यहां तक की उनकी पारिवारिक सीट आदमपुर से भी भव्य बिश्नोई को हार का मुंह देखना पड़ा जबकि जजपा के पूर्व सांसद दुष्यंत चौटाला 289221 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे। हरियाणा में सभी 10 सीटें हारने के बावजूद प्रदेश के कांग्रेसी नेता न तो हार पर मंथन करने को तैयार लगते हैं और न ही इस हार की जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार दिखता है जबकि कांग्रेस के वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर के नेतृत्व में कांग्रेस जींद उपचुनाव और इससे भी पहले निगमों के चुनावों में करारी हार झेल चुकी थी। ऊपर से आलम यह है कि लोकसभा चुनाव में मिली कड़ी शिकस्त के बावजूद विधानसभा चुनावों में भावी मुख्यमंत्री के रूप में दिखाने के होर्डिंग भी एक कांग्रेसी नेता के समर्थकों की आेर से लगाए जाने शुरू हो चुके है। विधानसभा चुनावों की आहट होते ही प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर केंद्र के शीर्ष नेताओं के दिशा निर्देश के अनुरूप 75+ का आंकड़ा छूने के लिए दिन रात मुहिम चलाए हुए है जबकि हरियाणा कांग्रेस में पिछले 5 सालों के दौरान ब्लॉक स्तर की समीतियां भी नहीं बनाई जा सकी है। इन हालातों में सीमित दिनों में आखिर हरियाणा कांग्रेस किस प्रकार से चुनावी विजय हासिल करने की कारगर नीति बना पाएगी इस पर कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ताओं आैर समर्थकों को काफी माथापच्ची करने के बावजूद भी कोई संतोषजनक आसार दिखते नजर नहीं आ रहे हैं। हरियाणा के पड़ोसी राज्य पंजाब में भी कांग्रेस को इन्हीं हालातों से गुजरना पड़ा था लेकिन जब से पंजाब कांग्रेस की कमान कैप्टन अमरेंद्र सिंह के हाथों में सौंपी गई तब से वहां मोदी लहर के बावजूद भी कांग्रेस जीत का परचम लहराने में कामयाब रही है। जरूरत इस बात की है कि पंजाब की तरह कांग्रेस को हरियाणा में पुण: जीवित करने के लिए मजबूत नेतृत्व और गुटबाजी को समाप्त करवाया जाए।