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हिंदुस्तान की जनता के दिलों पर राज करने वाले राज कपूर की पुण्यतिथि पर उनके बारे में कुछ खास*

राणा ओबराय
राष्ट्रीय ख़ोज/भारतीय न्यूज़,
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हिंदुस्तान की जनता के दिलों पर राज करने वाले राज कपूर की पुण्यतिथि पर उनके बारे में कुछ खास*
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चंडीगढ ;- अतीत को उसी संजीदगी और उसी जीवंतता के साथ वर्तमान के कैनवास पर उकेरना थोड़ा दुरूह तो जरूर होता है। खासकर उस शख्सियत को किसी फ्रेम में कैद करना और भी मुश्किल हो जाता है,जिन्हें सिल्वर स्क्रीन का ‘शो-मैन’ कहा जाता था। आप हिंदी फिल्मों की इतिहास का कोई भी पन्ने को पलट कर देखे ले तो हर पन्ने का तारतम्य राज कपूर से जुड़ता हुआ दिखाई देगा। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि दादा साहब फालके ने जिस पौधे को रोपा था। राज कपूर ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से सींच कर उसे वटवृक्ष बना दिया। हिंदी रजतपट का एकमात्र ऐसा अभिनेता था जो आज भी धूमकेतु की मानिंद चमकता दिखाई देता है। ‘आह’ और ‘बरसात’ से अपनी फिल्मी यात्रा शुरू करने वाले राज कपूर ‘राम तेरी गंगा मैली’ तक आते-आते स्वयं संस्था बन गये थे। इन्होंने बतौर निर्माता निर्देशक के तौर पर 1948 में अपनी पहली फिल्म ‘आग’ बनाई थी। महज चौबीस-पच्चीस वर्ष की उम्र में फिल्मकार होने का दर्जा हासिल कर लिया था। इस फिल्म में जिंदगी की तल्ख सच्चाई को जिस तरह से प्रस्तुत किया था, दर्शकों को झकझोर कर रख दिया था। आग के ठीक एक वर्ष बाद ‘बरसात’ ने अपनी सफलता के कई कीर्तिमान स्थापित किये। इस फिल्म के मधुर गीतों पर जहां दर्शक झूमते दिखे, वहीं राज कपूर और नरगिस की जोड़ी हिट साबित हुई। यह जोड़ी लंबे समय तक युवा वर्ग की पहली पसंद बन रही।
इसमें कोई दोमत नहीं कि राज कपूर प्रयोगधर्मी अभिनेता थे। इनकी हर फिल्में अनछुए पहलुओं को अपने भीतर समेटे दिखाई देती है। ज्यादातर फिल्मों की कहानियां भी उनकी जिंदगी से जुड़ी होती थी। आवारा राज कपूर की महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक थीं। इस फिल्म से उनकी अमिट पहचान देश में ही नहीं बल्कि रूस, तुर्की, चीन अफगानिस्तानबन, पाकिस्तान तक में बन गई। एक दौर में तो रूस के लोग नेहरु के बाद राज कपूर को ही पहचानते थे। आज भी सरहद पार के लोग ‘आवारा हूं या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं’ ‘ मेरा जूता है जापानी, सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ गुनगुनाते नजर आते हैं। आवारा एक ऐसी फिल्म थी जिसमें अभिजात्य समाज में व्याप्त घिनौनी सोच को उकेरने में बहुत हद तक सफल रही। आवारा के बाद राज कपूर की खुबसूरत फिल्मों की फेहरिस्त में ‘श्री 420’ को भी शुमार किया जाता है। आजादी के बाद युवाओं के लिए जो सपने गढ़े गये थे,कालांतर में टूटते चले गये। इस फिल्म के कथानक में युवाओं के टूटते सपनों का यथार्थ चित्रण किया गया है। बूट पॉलिश और जागते रहो जैसी फिल्मों के बाद सर्वहारा वर्ग के नायक बनकर उभरे। राज कपूर को भारत का ‘चार्ली चैप्लिन’ भी कहा जाता हैं।
मेरा नाम जोकर के फ्लॉप होने के बाद उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा था। झंझावातों के उस दौर में भी उनके पांव जरूर डगमगाये लेकिन अदम्य साहस के बल पर उठ खड़े हुए। बॉबी की शानदार सफलता के बाद वे कर्ज के बंधन से मुक्त हो गये। फणीश्वरनाथ रेणु के चर्चित उपन्यास पर बनी फिल्म तीसरी कसम में राज कपूर के सशक्त अभिनय को भला कोई कैसे भूल सकता है। हीरामन के पात्र को जीवंत बना दिया था।
एक लंबे कालखंड तक हिंदी फिल्म जगत पर राज कपूर का अधिपत्य कायम रहा। उनके द्वारा निर्देशित, अभिनीत तथा निर्माता के तौर पर फेहरिस्त में शामिल है–सपनों का सौदागर, दीवाना, अनारी, तीसरी कसम, मेरा नाम जोकर, दिल ही तो है, संगम, प्रेम रोग, राम तेरी गंगा मैली, अराउंड द वल्ड, जिस देश में गंगा बहती हैं, दुल्हा दुल्हन, एक दिल सौ अफ़साने, आशिक, नजराना, छलिया, श्रीमान सत्यवादी, कन्हैया, दो उस्ताद, मैं नशे में हूं, फिर सुबह होगी, चार दिल, चार राहें, परवरिश, जागते रहो, शारदा, बूट पॉलिश, धुन, आह, अनहोनी, आवारा, सरगम, भंवरा, बावरे नैन, दास्तान, जान पहचान, बरसात, अंदाज, अमर प्रेम, गोपीचंद, आह, जेल यात्रा, नील कमल, गोपीचंद जासूस, सत्यम शिवम सुंदरम,धरम करम, कल आज और कल, दिल की रानी, अब्दुल्ला, चित्तौड़ विजय, वाल्मीकि, नसीब, नौकरी, सोना चांदी, मेरा दोस्त, मेरा धर्म, खान दोस्त, गोरी, इंकलाब, हमारी बात आदि।
इन्हें अपनी विशिष्ट उपलब्धियों के लिए पद्मभूषण, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार तथा फिल्मफेयर अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। 2 जून 1988 को राज कपूर का निधन हो गया।

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