हरियाणा मानवाधिकार आयोग की पुलिस को फटकार / दिव्यांग को निर्वस्त्र करने वाले पुलिसकर्मियों से 50 हजार वसूलें विभाग!*
राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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हरियाणा मानवाधिकार आयोग की पुलिस को फटकार / दिव्यांग को निर्वस्त्र करने वाले पुलिसकर्मियों से 50 हजार वसूलें विभाग!*
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चंडीगढ़ ;- हरियाणा मानव अधिकार आयोग ने एक अहम और संवेदनशील निर्णय में स्पष्ट किया कि पुलिस हिरासत में किसी भी व्यक्ति — विशेषकर दिव्यांग नागरिक — के साथ ऐसा अपमानजनक और क्रूर व्यवहार पूर्णतः अस्वीकार्य है।
अनिल ठाकुर, पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं। पुलिस ने उन्हें 24 मई 2021 को एक आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया। उनकी शिकायत के अनुसार, उन्हें फरीदाबाद के सरन पुलिस स्टेशन में हिरासत के दौरान अर्धनग्न कर दिया गया, उनकी तस्वीरें और वीडियो बनाए गए, और इन तस्वीरों को बाद में सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया।
आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित बत्रा और सदस्यों कुलदीप जैन एवं दीप भाटिया को मिलकर बने पूर्ण आयोग ने अपने आदेश में लिखा है कि जांच शाखा की निष्पक्ष रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि एएसआई जगवती और कांस्टेबल राकेश कुमार द्वारा अनिल ठाकुर को अर्धनग्न किया गया और उनके परिजन को पुलिस हिरासत में वीडियो रिकॉर्डिंग करने की अनुमति दी गई। यह सब न केवल पुलिस आचरण नियमों के खिलाफ था, बल्कि व्यक्ति की निजता, गरिमा और मानसिक शांति को भी रौंदने वाला कृत्य था।
आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित बत्रा और सदस्यों कुलदीप जैन एवं दीप भाटिया ने संयुक्त रूप से पारित आदेश में कहा कि यह घटना हमारे संवैधानिक मूल्यों और मानव गरिमा की अवधारणा को ललकारने वाली है। कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी आरोप में हिरासत में क्यों न हो, इस प्रकार के अपमान और सार्वजनिक अपदस्थता का पात्र नहीं हो सकता। यह घटना अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का खुला उल्लंघन है।
प्रोटोकॉल, सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी डॉ. पुनीत अरोड़ा ने जानकारी दी कि पूर्ण आयोग के निर्देश के अनुसार, हरियाणा सरकार के गृह विभाग को 50 हजार की मुआवजा राशि पीड़ित अनिल ठाकुर को अदा करने के आदेश दिए गए हैं। यह राशि दोषी पुलिसकर्मियों — एएसआई जगवती और कांस्टेबल राकेश कुमार — से बराबर हिस्सों में वसूली जाएगी। यह मुआवजा राशि प्रतीकात्मक है, परंतु यह यह संदेश देती है कि राज्य व्यवस्था किसी भी नागरिक के सम्मान और गरिमा की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। पुलिस हिरासत को यातना स्थल नहीं बनने दिया जा सकता।

