बिहार चुनाव 2025 में आश्चर्यजनक रुझान / NDA की सुनामी में तेजस्वी और राहुल धराशायी / जानिए हार के 5 मुख्य कारण!*
राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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बिहार चुनाव 2025 में आश्चर्यजनक रुझान / NDA की सुनामी में तेजस्वी और राहुल धराशायी / जानिए हार के 5 मुख्य कारण!*
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पटना ;- बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के लिए एक दुस्वप्न साबित होते जा रहे हैं। यह चुनाव आरजेडी के सबसे खराब प्रदर्शनों में से एक होने की ओर बढ़ रहा है। पार्टी न सिर्फ इस चुनाव में फिसड्डी साबित हुई है, बल्कि खुद पार्टी के मुखिया तेजस्वी यादव के लिए भी अपनी सीट बचानी मुश्किल हो रही है। बिहार का मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे तेजस्वी यादव के लिए अब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी तक मिलनी मुश्किल साबित होने वाली है। 14 नवंबर को आ रहे ताजा रुझानों में, आरजेडी मात्र 25 से 26 सीटों पर बढ़त बनाती दिख रही है।
यह 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के खाते में आई 75 सीटों से आधी से भी कम है। बिहार में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा पाने के लिए भी कम से कम 24 विधायकों का होना जरूरी है। अगर आरजेडी जैसे-तैसे 24 सीटें हासिल कर भी लेती है, तो सबसे बड़ा सवाल खुद तेजस्वी यादव की अपनी सीट को लेकर पैदा हो गया है। तेजस्वी यादव अपनी पारंपरिक राघोपुर सीट पर 16वें राउंड की गिनती के बाद 9 हजार से ज्यादा वोटों से पिछड़ गए हैं। यहां बीजेपी उम्मीदवार सतीश कुमार लगातार बढ़त बनाए हुए हैं।
सवाल यह है कि जो पार्टी और जो नेता चुनाव के दिन तक बराबरी की टक्कर देने का दावा कर रहे थे, वे इस तरह कैसे धराशायी हो गए? आइए देखते हैं इस करारी हार के पीछे के 5 मुख्य कारण:
1. ‘यादव राज’ का डर? 52 यादव उम्मीदवारों का दांव उलटा पड़ा*
इस हार की एक प्रमुख वजह आरजेडी द्वारा 52 यादव उम्मीदवारों को टिकट देना साबित हुआ। यह फैसला न केवल पार्टी की ‘जातिवादी’ छवि को मजबूत कर गया, बल्कि इसने गैर-यादव वोट बैंक को आरजेडी से दूर भगा दिया।
बिहार की राजनीति जाति पर टिकी है, जहाँ यादव (14% आबादी) आरजेडी का कोर वोट बैंक हैं। लेकिन आरजेडी द्वारा कुल 144 सीटों में से 52 (यानी 36%) टिकट यादवों को देने से जनता में ‘यादव राज’ की गंध आने लगी। इसके चलते अगड़े और अति पिछड़े मतदाता महागठबंधन से छिटक गए। बीजेपी ने भी प्रचार में ‘आरजेडी का यादव राज’ के नैरेटिव को खूब भुनाया।
विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी ने यदि 30-35 यादव टिकटों तक खुद को सीमित रखा होता, तो कुर्मी-कोइरी वोटों का हिस्सा 10-15% बढ़ सकता था। यह ठीक वैसा ही है जैसा अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनावों में किया, जब उन्होंने केवल 5 यादव प्रत्याशियों को मैदान में उतारा और बाकी पिछड़ी जातियों व सवर्णों को साधकर जीत हासिल की।
2. सहयोगियों को ‘भाव’ न देना*
तेजस्वी यादव की रणनीति में सबसे बड़ी चूक अपने सहयोगियों—कांग्रेस, वाम दलों और छोटी पार्टियों—के साथ ‘बराबर भाव’ न रखना साबित हुआ। सीट शेयरिंग के विवादों ने गठबंधन को कमजोर किया और तेजस्वी के ‘आरजेडी सेंट्रिक’ अप्रोच ने विपक्ष को बांट दिया।
इसका नतीजा यह हुआ कि वोट ट्रांसफर फेल हो गया और एनडीए को ‘एकजुट’ दिखने का मौका मिला। कांग्रेस ने ‘गारंटी’ मेनिफेस्टो पर जोर दिया, लेकिन तेजस्वी ने ‘नौकरी देंगे’ को प्राथमिकता दी। इतना ही नहीं, तेजस्वी ने महागठबंधन के घोषणापत्र का नाम भी ‘तेजस्वी प्रण’ रखकर खुद को सबसे आगे कर दिया, जो सहयोगियों को चुभा। रैलियों में भी राहुल गांधी की तस्वीरें कम और तेजस्वी की ज्यादा दिखीं।
3. वादों का ‘ब्लूप्रिंट’ नहीं दे पाना*
तेजस्वी की सबसे बड़ी चूक यह रही कि उन्होंने वादे तो बहुत कर दिए, पर उनका कोई ठोस ब्लूप्रिंट जनता के सामने नहीं रख पाए। हर घर को एक सरकारी नौकरी, पेंशन, महिला सशक्तिकरण और शराबबंदी की समीक्षा जैसे वादों पर वोटरों ने भरोसा नहीं किया।
फंडिंग, कार्यान्वयन योजना या समयबद्ध ब्लूप्रिंट के अभाव ने अविश्वास पैदा किया। ‘हर घर को सरकारी नौकरी’ के सवाल पर वह खुद जवाब नहीं दे सके और हर रोज कहते रहे कि ‘बस अगले 2 दिन में ब्लूप्रिंट आ जाएगा’, लेकिन वह दिन चुनाव बीत जाने के बाद भी नहीं आया।
4. महागठबंधन की ‘मुस्लिमपरस्त’ छवि
महागठबंधन की ‘मुस्लिमपरस्त’ छवि तेजस्वी यादव की हार का एक और बड़ा कारण बनी। मुस्लिम बहुल सीटों पर तो आरजेडी या उसके सहयोगियों की जीत संभव होगी, पर पूरे प्रदेश में इसका भारी नुकसान हुआ।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, खुद यादव जाति के वोट कई जगहों पर आरजेडी को नहीं मिले। सत्ता मिलने पर बिहार में ‘वक्फ बिल’ नहीं लागू करने का वादा जिस तरह तेजस्वी ने किया, वह बहुत से यादव बंधुओं को भी पसंद नहीं आया। बीजेपी ने लालू यादव के संसद में वक्फ बिल के खिलाफ दिए पुराने भाषण को खूब वायरल कराया, जिसका फायदा उसे मिला।
5. पिता लालू प्रसाद को लेकर ‘कंफ्यूजन’*
इस पूरे चुनाव में तेजस्वी अपने पिता लालू प्रसाद की विरासत को लेकर कन्फ्यूज दिखे। उन्होंने लालू के सामाजिक न्याय एजेंडे को अपनाया तो, लेकिन ‘जंगल राज’ की छवि से डरकर पोस्टरों में उनकी तस्वीर को छोटा कर दिया।
*यह दोहरी नीति पड़ गई उल्टी* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोपालगंज रैली में कहा, “तेजस्वी लालू के पाप छिपा रहे हैं।” विश्लेषकों का मानना है कि ‘नई पीढ़ी’ को साधने के चक्कर में तेजस्वी ने पोस्टर्स में लालू को कोने में ठूंस दिया, जो उनके कोर वोटरों के बीच ‘अपमान’ का संदेश दे गया।

