Saturday, June 29, 2024
Latest:
करनालखेलचंडीगढ़जिंददेश-विदेशपंचकुलापंजाबपानीपतराज्यहरियाणा

कर्नाटक चुनावों की हार से क्या भाजपा लेगी कोई सबक या फिर राजस्थान, मध्यप्रदेश औऱ छत्तीसगढ़ के नजदीकी चुनावो में भी कांग्रेस को सरकार बनाने का देगी मौका?*

राणा ओबराय
राष्ट्रीय ख़ोज/भारतीय न्यूज,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कर्नाटक चुनावों की हार से क्या भाजपा लेगी कोई सबक या फिर राजस्थान, मध्यप्रदेश औऱ छत्तीसगढ़ के नजदीकी चुनावो में भी कांग्रेस को सरकार बनाने का देगी मौका?*
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की शानदार जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए वो दौर शुरू हो चुका है जब उसे मंथन करना जरूरी हो गया है. ये चुनाव पार्टी को सबक और सबब दोनों देकर गया है. अब पार्टी को केंद्रीय नेताओं से इतर मजबूत क्षेत्रीय नेताओं को बड़ी भूमिका देने पर विचार करना पड़ सकता है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि राज्यों में मजबूत नेतृत्व प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला करने में सहायक होता है, खासकर विपक्षी दलों के पास भी मजबूत क्षेत्रीय नेता होने की स्थिति में. उन्होंने स्वीकार किया कि कर्नाटक में यह स्पष्ट रूप से गायब था. हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद कर्नाटक में कांग्रेस के हाथों मिली हार ने केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी को स्थानीय नेताओं को मजबूत भूमिका में लाने की दिशा में सोचने की ओर अग्रसर किया है. इसकी वजह है कि दोनों प्रतिद्वंद्वियों को 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले इस साल तीन और राज्यों के चुनावों में सीधी टक्कर का सामना करना है.

*बड़े राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी की हुई हार*
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद यह पहली बार है जब कांग्रेस ने अपने सिकुड़ते जनाधार के बीच एक बड़े राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी को हराया है. यह एक ऐसी उपलब्धि कही जा सकती है जो उसके पस्त कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करेगी और संभवतः आने वाले महीनों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी का मुकाबला करने के लिए जोश भरेगी।
बीजेपी ने कर्नाटक के पूरे चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को केंद्र में रखा और राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह दी. वहीं कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों पर चुनाव को केंद्रित किया, मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के खिलाफ जनता के बीच ‘40 प्रतिशत कमीशन सरकार’ का विमर्श खड़ा किया और सिद्धारमैया तथा प्रदेश अध्यक्ष डी के शिवकुमार के इर्द गिर्द चुनावी प्रचार को आगे बढ़ाया।
*सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला हुआ फेल*
कर्नाटक के नतीजों में मजबूत स्थानीय नेताओं के महत्व को रेखांकित किए जाने के बीच बीजेपी सूत्रों ने कहा कि पार्टी को भी इस पर विचार करना पड़ सकता है और क्षेत्रीय नेताओं को बड़ी भूमिका देने पर विमर्श करना पड़ सकता है. पार्टी के एक नेता ने 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बीजेपी की महत्वपूर्ण जीत की ओर इशारा किया और कहा कि यह इसलिए संभव हो पाया कि वहां उसके पास मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे एक मजबूत क्षेत्रीय नेता थे।
पार्टी सूत्रों ने कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी के वोट प्रतिशत में अंतर इस बात का स्पष्ट संकेत है कि प्रधानमंत्री मोदी की व्यापक स्वीकृति राष्ट्रीय और राज्य चुनावों में समान रूप से काम नहीं करती है. नतीजे बता रहे हैं कि ‘दक्षिण का द्वार’ कहे जाने वाले इस प्रदेश में ना तो प्रधानमंत्री मोदी का निजी करिश्मा और ना ही उनकी जीतोड़ मेहनत काम आई. बीजेपी का ‘डबल इंजन’ सरकार का नारा, नये चेहरों पर भरोसे की उसकी ‘पीढ़ीगत बदलाव’ की रणनीति भी कोई असर नहीं दिखा सकी और सोशल इंजीनियरिंग का उसका फार्मूला भी बेरंग ही नजर आया। बीजेपी ने इस बार के चुनाव में परम्परा तोड़ने के लिए पूरा दमखम लगा दिया था. सबसे पहले उसने सत्ता विरोधी लहर को पाटने के लिए दो दर्जन के करीब मौजूदा विधायकों के टिकट काटे और पांच दर्जन से अधिक नए चेहरों को मौका दिया. इस क्रम में बीजेपी ने जगदीश शेट्टार और लक्ष्मी साउदी जैसे वरिष्ठ नेताओं तक को नजरअंदाज किया. पार्टी ने अपनी इस रणनीति को कर्नाटक बीजेपी में ‘पीढ़ीगत बदलाव’ करार दिया था.

*सामाजिक समीकरण साधने की रणनीति भी हुई फेल*
बीजेपी ने सामाजिक समीकरण को साधने के लिए लिंगायत के साथ-साथ वोक्कालिगा समुदाय और पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों को बड़ी संख्या में टिकट दिया. हालांकि उसका यह फार्मूला भी कारगर नहीं रहा. चुनाव परिणामों के मुताबिक कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव में स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है. कांग्रेस 224 सदस्यीय विधानसभा में 133 सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है जबकि तीन सीटों पर वह बढ़त बनाए हुए है. बढ़त वाली सीटों को भी वह जीत लेती है तो वह 136 के आंकड़ें तक पहुंच सकती है. वर्ष 1989 के विधानसभा चुनाव के बाद यह कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत होगी।
जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में 104 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने अभी तक 64 सीटों पर जीत दर्ज की है जबकि 01 सीट पर उसका उम्मीदवार आगे हैं. इस प्रकार वह 65 सीटों पर सिमटती दिख रही है. साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 40, 2008 में 110, 2004 में 79, 1999 में 44 और 1994 में 40 सीटें मिली थी। यहां यह बात भी गौर करने वाली है कि पिछले 38 सालों में कभी भी कोई सत्ताधारी दल चुनाव जीत कर सत्ता में वापसी नहीं कर सका है. यह दस्तूर इस बार के चुनाव में भी कायम रहा. साल 2018 में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था लेकिन सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी बीजेपी ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और वरिष्ठ नेता बी एस येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनी. इस चुनाव में कांग्रेस 80 सीटें और जद (एस) 37 सीटें जीतकर क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर थी।
हालांकि, विश्वास मत से पहले तीन दिनों के भीतर ही उनकी सरकार गिर गई. क्योंकि येदियुरप्पा आवश्यक संख्या बल नहीं जुटा सके थे. इसके बाद, कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन ने सरकार बनाई और कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने. लेकिन 14 महीनों के भीतर ही यह सरकार भी गिर गई. क्योंकि 17 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और वे सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर आ गए. बाद में सभी बीजेपी में शामिल हो गए और पार्टी की सत्ता में वापसी में मदद की।
बजरंग दल को भुनाने की कोशिश भी रही नाकाम
कांग्रेस के ‘40फीसदी कमीशन सरकार’ के आरोपों की काट निकालने के लिए खुद प्रधानमंत्री मोदी ने मोर्चा संभाला और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के एक पुराने बयान का हवाला देकर कांग्रेस पर 85 प्रतिशत कमीशन वाली सरकार का आरोप मढ़ा. प्रधानमंत्री ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार में उतरने से पहले राज्य भर के पार्टी कार्यकर्ताओं से डिजिटल माध्यम से संवाद किया था. इसके बाद उन्होंने 18 जनसभाओं को संबोधित किया और बेंगलुरु सहित छह स्थानों पर रोड शो भी किए। कांग्रेस द्वारा अपने चुनावी घोषणापत्र में बजरंग दल को प्रतिबंधित करने के वादे को भी बीजेपी ने भुनाने की भरपूर कोशिश की. बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी, दोनों ने ही इस मुद्दे का इस्तेमाल कांग्रेस पर भगवान आंजनेय और हिंदुओं की भावनाओं के खिलाफ होने का आरोप लगाने के लिए किया. उन्होंने प्रचार अभियान के दौरान बार-बार ‘जय बजरंगबली’ का उद्घोष भी किया. नतीजे बताते हैं कि यह कोशिश भी नाकाम साबित हुई। कर्नाटक का चुनाव बीजेपी के संगठन महामंत्री बी एल संतोष के लिए अहम था. पार्टी के अध्यक्ष के बाद बीजेपी में संगठन महामंत्री का पद सबसे महत्वपूर्ण होता है. टिकट बंटवारे और उम्मीदवारों के चयन से लेकर प्रचार अभियान को धार देने और संगठन स्तर पर कार्यकर्ताओं में जोश भरने में संतोष की भूमिका महत्वपूर्ण थी. वह खुद कर्नाटक से ताल्लुक भी रखते हैं. इससे पहले, बीजेपी को अपने अध्यक्ष जे पी नड्डा के गृह प्रदेश हिमाचल में हार का सामना करना पड़ा था.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!