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SYL मुद्दे पर आज होगी हरियाणा और पंजाब के सीएम की बैठक, CM खट्टर ने हरियाणा हित की बात की बात करते हुए कहा, SYL का पानी न मिलने से हरियाणा की धरती प्यासी तथा किसानों को भारी नुकसान*

राणा ओबराय
राष्ट्रीय ख़ोज/भारतीय न्यूज,
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SYL मुद्दे पर आज होगी हरियाणा और पंजाब के सीएम की बैठक, CM खट्टर ने हरियाणा हित की बात की बात करते हुए कहा, SYL का पानी न मिलने से हरियाणा की धरती प्यासी तथा किसानों को भारी नुकसान*
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चंडीगढ़ ;- सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर के मुद्दे पर 14 अक्तूबर को हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्री की बैठक होगी। सुबह साढ़े 11 बजे होने वाली इस बैठक में मामले के समाधान के लिए विचार-विमर्श किया जाएगा। बैठक में हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल और पंजाब के मुख्यमंत्री श्री भगवंत मान मौजूद रहेंगे। बैठक से पहले मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने स्पष्ट किया कि एसवाईएल हरियाणावासियों का हक है और यह उन्हें पूरी आशा है की उन्हें उनका यह हक़ अवश्य मिलेगा। उन्होंने कहा कि हरियाणा के लिए एसवाईएल का पानी अत्यंत आवश्यक है। अब इस मामले में एक टाइम लाइन तय होना जरूरी है, ताकि प्रदेश के किसानों को पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित हो सके। उन्होंने उम्मीद जताई की शुक्रवार को होने वाली इस अहम् बैठक से कोई हल जरूर निकलेगा।
सर्वविदित है कि सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने एसवाईएल का निर्माण कार्य पूरा नहीं किया है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को लागू करने की बजाए पंजाब ने वर्ष 2004 में समझौते निरस्तीकरण अधिनियम बनाकर इनके क्रियान्वयन में रोड़ा अटकाने का प्रयास किया। गौरतलब है कि पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के अंतर्गत भारत सरकार के आदेश दिनांक 24.3.1976 के अनुसार हरियाणा को रावी-ब्यास के फालतू पानी में से 3.5 एमएएफ जल का आबंटन किया गया था। एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न होने की वजह से हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का इस्तेमाल कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का गैर-कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है। पंजाब के इस रवैये के कारण हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एम.ए.एफ. पानी नहीं ले पा रहा है। पंजाब और राजस्थान हर वर्ष हरियाणा के लगभग 2600 क्यूसिक पानी का प्रयोग कर रहे हैं। यदि यह पानी हरियाणा में आता तो 10.08 लाख एकड़ भूमि सिंचित होती, प्रदेश की प्यास बुझती और लाखों किसानों को इसका लाभ मिलता। इस पानी के न मिलने से दक्षिणी-हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है। एसवाईएल के न बनने से हरियाणा के किसान महंगे डीजल का प्रयोग करके और बिजली से नलकूप चलाकर सिंचाई करते हैं, जिससे उन्हें हर वर्ष 100 करोड़ रुपये से लेकर 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ता है। पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल के न बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित करने के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है। हरियाणा को हर वर्ष 42 लाख टन खाद्यान्नों की भी हानि उठानी पड़ती है। यदि 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल बन जाती, तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे उत्पादों का उत्पादन करता। 15 हजार प्रति टन की दर से इस कृषि पैदावार का कुल मूल्य 19,500 करोड़ रुपये बनता है।

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