सांसों का खेल, इंसान सांस लेता रहे तो है जीवन है, जब सांस लेना छोड दे तो कहलाती है मृत्यु!*
राणा ओबराय
राष्ट्रीय ख़ोज/भारतीय न्यूज,
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सांसों का खेल, इंसान सांस लेता रहे तो है जीवन है, जब सांस लेना छोड दे तो कहलाती है मृत्यु!*
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इन सांसों को देख रहो हो?क्या ये सांसें दिखाई दे रही है? नहीं लेकिन है।
ये जो सांसों के दो तार है जो लगातार चल रहे हैं।इनको तुम रोक नहीं सकते एक सांस आ रही है तो एक सांस जा रही है।इनको समान रूप से चलाने वाला कोन है? जब सांस ले रहे हो तो जीवन है।ओर जब छोड़ रहे हो तो मृत्यु है।इन सांसों के आधार पर ही शरीर का वजन हैं।किसी का अस्सी किलो,किसी का सौ किलो,तो किसी का साठ किलो
उसे अपना वजन भारी नहीं लगता
लेकिन जब सो जाएं,या मर जाए तो उस आदमी को अकेला कोई नहीं उठा सकता
पर सांसों में इतनी पावर, शक्ति है कि,अकेले इसने शरीर का भार उठा रखा है। इसी की धोनी से वो ज्योति जल रही है।जो बिना घी तेल बाती के जल रही है।जहां सांस रूकी खेल खत्म
इन सांसों के तार किसके हाथ में है?कोन इनको चला रहा है?
इन सांसों के तार,करतार के हाथ में है।
वहीं परमात्मा इन सांसों को चला रहा है।