इन 5 लोगों की वजह से जेल पहुंचे गुरमीत राम रहीम
राज नारायण पांडे : एक ऐसा बाबा जिसके रसूख और दबदबे के आगे सरकारें कांपती हों, एक ऐसा बाबा जिसके चरणों पर बड़े-बड़े सियासतदां सजदा करते हों, एक ऐसा बाबा बलात्कारी करार दिए जाने के बाद भी राज्य का एडिशनल एडवोकेट जनरल जिसका बैग उठा कर खुद को धन्य समझता हो, वैसे बाबा से टकराना कोई मामूली बात नहीं. ऐसे बाबा को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए यकीनन जिगर चाहिए. तो आइए अब आपको मिलवाते हैं, पांच ऐसे ही जिगर वाले लोगों से, जिन्होंने बाबा को उसके किले से उठा कर रोहतक जेल तक पहंचा दिया.
जिस गुरमीत राम रहीम के पास बेशुमार दौलत है. जिसके लाखों समर्थक हैं. जिसके पैरों में सत्ता लोटती है. जिसकी एक झलक भर पाकर लोग खुद को निहाल समझते हों, उस बाबा के खिलाफ कुछ बोलना और बोलकर उस पर कायम रहना. अदालत में उसके खिलाफ गवाही देना और गवाही देकर उसे सलाखों के पीछे पहुंचा देना कोई हंसी खेल नहीं है।
लेकिन वे पांच लोग ऐसे थे, जो सच और हक के साथ आखिरी वक्त तक खड़े रहे. इन्हीं पांच किरदारों की बदौलत आज बाबा गुरमीत राम रहीम सलाखों के पीछे है. बाबा के ताबूत में कील ठोंकनेवाले यही वो पांच हीरो हैं. जिन्हें आज दुनिया सलाम कर रही है.
दो साध्वी : सुरक्षा कारणों और बलात्कार पीड़िता होने की वजह से हम आपको न तो उनका नाम बता सकते हैं और ना ही इनके चेहरे दिखा सकते हैं. बाबा की करतूतों का पहला खुलासा तो खैर उस गुमनाम चिट्ठी से हुआ, जिसने सबको झकझोर दिया था, लेकिन उस चिट्ठी में लिखी दर्द भरी कहानी की गवाही देने के लिए बस यही दो साध्वियां रहीं, जो अंत तक चट्टान की तरह डटी रही. इस चिट्ठी की बिनाह पर जब सीबीआई ने मामले की तफ्तीश शुरू की, तो 18 लड़कियों ने अपने साथ ज्यादती की बात कुबूल की, लेकिन सीबीआई को सिर्फ ऐसी दो ही लड़कियां मिलीं, जिन्होंने ना सिर्फ अपने साथ हुई ज्यादती खुलकर बयान की, बल्कि ये सबकुछ अदालत में बताने का फैसला किया. आज इन्हीं दो लड़कियों की बदौलत बाबा को सजा हुई है.
मरहूम पत्रकार रामचंद्र छत्रपति : हिसार के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति अपने धुन के पक्के इंसान थे. उन्हें जिस खबर में जरा भी सच्चाई नजर आती, ये अपने अंजाम की परवाह किए बगैर उसे फौरन अपने अखबार श्पूरा सचश् में छाप दिया करते थे. ये छत्रपति का जिगर ही था कि उन्होंने पहली बार गुमनाम चिट्ठियों के हवाले से बाबा की पोल खोली थी, लेकिन उन्हें इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. सीबीआई के मुताबिक बाबा के शूटर साधकों ने छत्रपति की 24 अक्टूबर 2002 को हत्या कर दी थी.
रणजीत सिंह : गुरमीत राम रहीम के खिलाफ चट्टान की तरह डटी रहने वाली दो बहनों में से एक का भाई था रणजीत सिंह. जिसने अपनी बहन के साथ हुई ज्यादती से दुखी होकर बाबा का डेरा छोड़ दिया था. सीबीआई की मानें तो बाबा ने राज फाश होने के डर से रणजीत सिंह का भी कत्ल करवा दिया. फिलहाल, छत्रपति मर्डर केस की तरह इस मामले की सुनवाई भी सीबीआई अदालत में चल रही है।
फकीरचंद : गुरमीत राम रहीम के डेरे में फकीरचंद नामक एक साधु हुआ करता था, लेकिन वो उन लोगों में था, जिन्होंने अपने जमीर के साथ समझौता नहीं किया. बाबा की करतूत जानते ही उसने डेरा छोड़ दिया. वो लोगों को जगाने में लग गया. उसने बाबा की असलियत को लोगों के सामने रखा. और इसकी कीमत उसे अपनी गुमशुदगी से चुकानी पड़ी. फकीरचंद आज भी गुमशुदा है. वो कहां है, कोई नहीं जानता. सीबीआई राम रहीम के खिलाफ हाई कोर्ट में इस मामले की भी पैरवी कर रही है.