हरियाणा की राज्यसभा सीट पर भाजपा के चार नेताओं की नजर/ अभिमन्यु , धनखड़, कुलदीप या संजय भाटिया में से कौन मारेगा बाजी!*
राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हरियाणा की राज्यसभा सीट पर भाजपा के चार नेताओं की नजर/ अभिमन्यु , धनखड़, कुलदीप या संजय भाटिया में से कौन मारेगा बाजी!*
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
चंडीगड़ ;- हरियाणा में विधानसभा चुनाव के बाद हरियाणा में एक चुनाव औऱ होगा। वह चुनाव राज्यसभा का होगा। कृष्ण पवार हरियाणा में मंत्री बन गए उनके राज्यसभा से त्यागपत्र देने के बाद अब राज्यसभा के चुनाव होगा। लेकिन अबतक चुनाव आयोग ने तारीख का ऐलान नहीं किया गया है। परन्तु प्रदेश में नेताओं की तरफ से इस सीट के लिए लॉबिंग शुरू हो गई है। प्रदेश के कई भाजपा नेता राज्यसभा की सीट पर नजरें गढ़ाएं बैठे हैं। लेकिन इस लिस्ट में मुख्य तौर पर तीन से चार नेताओं के नाम हैं। करनाल से भाजपा के पूर्व सांसद संजय भाटिया, कुलदीप बिश्नोई, कैप्टन अभियन्यू और ओपी धनखड़ सांसद बनने की चाह पाले हुए हैं।
दरअसल, हरियाणा विधानसभा चुनाव में पानीपत की इसराना सीट से कृष्ण लाल पंवार ने विधायकी का चुनाव जीता था. उसके बाद उन्होंने राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। इस सीट पर अब कई दावेदार नजर आ रहे हैं। करनाल से पूर्व सांसद संजय भाटिया भी रेस में शामिल हैं। नायब सैनी सरकार में शपथ ग्रहण समारोह के आयोजन की भी बड़ी जिम्मेदारी उन्हें दी गई थी. वह पीएम मोदी औऱ खट्टर के करीबियों में शुमार हैं। उन्होंने मनोहर लाल खट्टर के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी करनाल लोकसभा सीट छोड़ दी थी। इसके अलावा, कुलदीप बिश्नोई, कैप्टन अभिमन्यू और ओपी धनखड़ भी रेस में शामिल हैं। कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई विधानसभा चुनाव में हार गए थे और 60 साल में पहली बार आदमपुर में उनके परिवार का सियासी किला ढह गया है। इस हार के कारण हरियाणा की सिसायत में उनकी पकड़ ढिली हुई है और वह अब राज्यसभा की इस सीट पर नजरें गढ़ाए हुए हैं। अहम बात है कि बीते समय में लोकसभा चुनाव के बाद राज्यसभा की एक सीट के लिए चुनाव हुआ था। उस दौरान भी कुलदीप बिश्नोई ने कोशिश की थी, लेकिन उनके बदले किरण चौधरी को सांसद बनाय गया था। कैप्टन अभिमन्यु 2014 की खट्टर सरकार में मंत्री थी। 2019 में वह विधानसभा चुनाव हार गए और 2024 में भी उन्हें जीत नसीब नहीं हुई। वह अब हाशिये पर चले गए हैं और ऐसे में सियासत में दोबारा वह अपनी पकड़ बनाना चाहते हैं और यही वजह है कि वह भी दावेदारी जता रहे हैं। इसके अलावा, ओपी धनखड़ भी दावेदार हैं वह भी भाजपा में साइडलाइन हो गए हैं। इस बार के चुनाव में भी उनकी हार हुई थी। धनखड़ भाजपा के ताकतवर प्रदेशाध्यक्ष भी रहे थे। लेकिन उनकी हार के बाद से वह सियासी तौर पर कमजोर हुए हैं।