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हाईकोर्ट का उत्पीड़न रोकने के लिए कर्मचारी के हित मे अहम आदेश, सभी अनुशासनात्मक कार्यवाही एक वर्ष में होनी चाहिए पूरी*

राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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हाईकोर्ट का उत्पीड़न रोकने के लिए कर्मचारी के हित मे अहम आदेश, सभी अनुशासनात्मक कार्यवाही एक वर्ष में होनी चाहिए पूरी*
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सरकारी कर्मचारियों के लंबे समय तक उत्पीड़न को रोकने की दिशा में अहम आदेश जारी करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि सभी अनुशासनात्मक कार्यवाही एक वर्ष के भीतर पूरी की जाएं, अन्यथा अस्पष्टीकृत देरी के कारण वे अमान्य मानी जाएगी।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने हरियाणा राज्य कृषि विपणन बोर्ड के पूर्व स्टोर कीपर-सह-मंडी निरीक्षक खैराती लाल की याचिका पर सुनवाई के यह आदेश जारी किया है, जो दिसंबर 2006 में सेवानिवृत्त हुए थे। याची ने 2002-03 के दौरान गेहूं के स्टॉक की कमी से संबंधित कथित कदाचार के लिए सेवानिवृत्ति के 15 साल बाद मई 2022 में जारी दंड आदेश को चुनौती दी थी। मामला 2003 का है जब बोर्ड ने याची के कार्यकाल में गेहूं की कमी के कारण 67.96 लाख रुपये के नुकसान का आरोप लगाया था। उनकी सेवानिवृत्ति के दो साल से भी अधिक समय बाद जनवरी 2009 में उन पर आरोप पत्र दायर किया गया था। इसके बाद जांच हुई, लेकिन पूरी राशि की वसूली की सज़ा 2022 में ही दी गई। लाल ने तर्क दिया कि सेवानिवृत्ति के बाद कार्रवाई शुरू करना सेवा नियमों का उल्लंघन है और इससे उन्हें अनावश्यक कठिनाई हुई, जिसमें ग्रेच्युटी और अवकाश नकदीकरण जैसे सेवानिवृत्ति लाभ रोकना भी शामिल है। आरोप पत्र और उसके बाद की सभी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया। न्यायाधीश ने कहा जब देरी अत्यधिक हो और विभाग द्वारा इसका स्पष्टीकरण न दिया जाए, तो पूरी अनुशासनात्मक कार्यवाही ही अमान्य हो जाती है। ऐसे मामलों को रोकने के लिए कोर्ट ने कहा कि आरोप पत्र छह महीने के भीतर दाखिल होना चाहिएए। दंड देने वाले प्राधिकारी को रिपोर्ट के तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए और अपीलों का निपटारा तीन महीने के भीतर किया जाना चाहिए। पूरी प्रक्रिया अधिकतम एक वर्ष के भीतर पूरी होनी चाहिए और इससे अधिक किसी भी अस्पष्टीकृत देरी के लिए प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जा सकता है।

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