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*सांसद रणदीप सुरजेवाला ने जारी विज्ञप्ति में कहा अमरीका द्वारा करवाए गए सीजफायर को लेकर राष्ट्र चाहता है सरकार से सवालों के जवाब*

राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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*सांसद रणदीप सुरजेवाला ने जारी विज्ञप्ति में कहा अमरीका द्वारा करवाए गए सीजफायर को लेकर राष्ट्र चाहता है सरकार से सवालों के जवाब*
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चंडीगड़ ;- सांसद रणदीप सुरजेवाला ने जारी बयान में कहा मरीका द्वारा हमारे और पाकिस्तान के बीच ‘युद्ध विराम समझौते’ की घोषणा किए 48 घंटे से अधिक समय बीत चुका है। ऑप्रेशन सिंदूर द्वारा आतंक पर प्रहार करने में हमारे सशस्त्र बलों की वीरता, दृढ़ता और दृढ़ प्रतिक्रिया ने हर भारतीय को गौरवान्वित किया है, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व को अब राष्ट्र को जवाब देना चाहिए। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘रहस्यमयी चुप्पी’ साध रखी है। ऑप्रेशन सिंदूर व पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध विराम के समझौते के तहत हमें क्या रणनीतिक, सैन्य और राजनीतिक बढ़त एवं परिणाम प्राप्त हुए, यह देश को बताना आवश्यक है। जब हमारे सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान पर स्पष्ट बढ़त हासिल कर ली थी, ऐसे में ऑप्रेशन सिंदूर को अचानक रोक दिए जाने से अजीबो-गरीब व रहस्यमयी सवाल जनता के जेहन में उठ रहे हैं। हर न्यूज रिपोर्ट, टीवी चैनल और अख़बार ने पाकिस्तान और आतंकवादियों को पछाडऩे और पाकिस्तान के ‘आतंकवादी नेटवर्क’ में गंभीर दरारें पडऩे की पुष्टि की। फिर अचानक अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कहने से पाकिस्तान से समझौता क्यों हुआ? इस महत्वपूर्ण मोड़ पर युद्ध विराम से हमें वास्तव में क्या हासिल होगा? इतने वर्षों में पहली बार लंबे समय तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमित शाह सार्वजनिक रूप से अपनी स्थिति बताने के लिए सामने नहीं आए हैं। भारत का नेतृत्व चुप क्यों रहे, खासकर तब जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ झूठी व मनगढ़ंत जीत का दावा कर रहे हों? राष्ट्र ऐसे कई जवाबों का इंतजार कर रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 10 मई को शाम 5 बजकर 22 मिनट पर घोषणा की कि भारत और पाकिस्तान अमरीका की मध्यस्थता में एक लंबी बातचीत के बाद, पूर्ण और तत्काल युद्ध विराम पर सहमत हो गए हैं। अमरीकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने उसी दिन शाम 5.37 बजे भारत-पाकिस्तान युद्ध विराम की घोषणा की। इसके बाद अमरीकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भी इस घोषणा की पुष्टि की। दूसरी ओर भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने 10 मई को ही शाम 5: 58 बजे घोषणा की कि भारत और पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशक ने 10 मई, 2025 को शाम 5 बजे से युद्ध विराम पर सहमति जताई है। अमरीकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने यह भी घोषणा की कि भारत और पाकिस्तान ने तीसरे स्थान पर युद्ध विराम उपरांत मुद्दों पर बातचीत शुरू करने पर सहमति जताई है। ऐसे में देश की जनता के वाजिब सवाल हैं, जिनके जवाब सरकार को देने चाहिएं। हमारी सरकार ने देश के लिए कौन से रणनीतिक, सैन्य और राजनीतिक लक्ष्य हासिल किए हैं? क्या हमने पाकिस्तान के साथ 10 मई, 2025 का युद्ध विराम समझौता अमरीकी सरकार की मध्यस्थता में किया है? फिर मोदी सरकार इसकी पुष्टि क्यों नहीं कर रही है? वे कौन सी शर्तें हैं जिनके आधार पर भारत ने युद्धविराम समझौते के तहत पाकिस्तान के साथ बातचीत करने पर सहमति जताई है? भारत ने पाकिस्तान के साथ तटस्थ स्थल यानी किसी तीसरे देश में जाकर बातचीत करने को क्यों स्वीकार किया है? क्या यह एकतरफा कदम भारत की कोई तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं मंजूर करने की सालों से निर्धारित नीति के विरुद्ध नहीं है? हम यह क्यों मंजूर कर रहे हैं कि अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत को पाकिस्तान के बराबर का दर्जा दें, जबकि यह पूरी तरह से स्थापित तथ्य है कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है? क्या मोदी सरकार को पता नहीं है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए मध्यस्थता व्यक्त करते हुए एक बयान जारी किया है? क्या मोदी सरकार भारत की घोषित नीति के पूर्ण उल्लंघन में कश्मीर में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की अनुमति देने जा रही है? यदि नहीं, तो प्रधानमंत्री मोदी ने इसका विरोध क्यों नहीं किया? क्या पाकिस्तान ने आतंकवाद पर लगाम लगाने के बारे में कोई सबक सीखा है, क्योंकि उसके प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ जीत का झूठा दावा करने और अपने आतंकी ठिकानों को वैध ठहराने के लिए फर्जी शेखी बघारते हुए टेलीविजन पर संबोधन कर रहे हैं? मोदी सरकार हमारे राष्ट्रीय हित में पाकिस्तान के झूठ को उजागर क्यों नहीं कर रही है? जब पाकिस्तान ने कुछ ही घंटों के भीतर संघर्ष विराम समझौते का उल्लंघन किया और 10 मई की शाम को ड्रोन हमले और भारी गोलाबारी की, तो क्या उन्होंने युद्धविराम समझौते पर खुद ही प्रश्रचिह्न नहीं लगा दिया? क्या पाकिस्तान अब युद्ध विराम समझौते के तहत पहलगाम आतंकी हमले और 25 देशवासियों सहित 26 निर्दोष लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों (जो भाग गए थे) को भारत को सौंप देगा, ताकि भारत उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दे सके? क्या पाकिस्तान युद्ध विराम समझौते के तहत पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में सभी आतंकी शिविरों को नष्ट करने पर सहमत हो गया है? क्या युद्ध विराम समझौते के हिस्से के रूप में, पाकिस्तान ने जैश-ए-मुहम्मद, जमात-उल-दावा, तहरीक-ए-आजादी जम्मू और कश्मीर, हिज्ब-उल-मुजाहिदीन, हरकत-उल-मुजाहिदीन लश्कर-ए-तैयबा , जम्मू और कश्मीर नैशनल लिबरेशन आर्मी, कश्मीर जिहाद फोर्स, अल जिहाद फोर्स, जम्मू और कश्मीर स्टूडैंट्स लिबरेशन फ्रंट, तहरीक-ए-हुर्रियत-ए-कश्मीर और दर्जनों अन्य भारत विरोधी आतंकवादी समूहों को पाकिस्तानी धरती से भारत के खिलाफ किसी भी आतंकवादी गतिविधि को अंजाम देने से प्रतिबंधित करने पर सहमति व्यक्त की है? क्या युद्ध विराम समझौते के तहत, पाकिस्तान ने सहमति व्यक्त की है कि उसकी कुख्यात आई.एस.आई. (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजैंस), अपनी तीन-स्तरीय प्रणाली के माध्यम से भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद कर देगी? क्या, युद्ध विराम समझौते के तहत, पाकिस्तान ने आई.एस.आई और पाकिस्तानी सेना के संरक्षण में पाकिस्तानी धरती से काम कर रहे मौलाना मसूद अजहर, हाफिज सईद, दाऊद इब्राहिम और सैकड़ों अन्य खूंखार अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों को भारत को सौंपने पर सहमति व्यक्त की है। राष्ट्र को कई सवालों के जवाब का इंतजार है। खुफिया और सुरक्षा विफलता’ की सीमा क्या थी, जिसके कारण पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित आतंकवादियों ने पहलगाम में आतंकी हमला किया? बैसरन मीडो, पहलगाम में कोई सुरक्षाकर्मी क्यों नहीं तैनात किया गया? गृह मंत्री अमित शाह ने 24 अप्रैल 2025 को सर्वदलीय बैठक में बैसरन मीडो, पहलगाम के खुलने की जानकारी न होने का दावा क्यों किया? फिर ऐसा कैसे हुआ कि उसके बाद पहलगाम में हर सरकारी अधिकारी और टूर ऑप्रेटर ने आगे आकर कहा कि बैसरन मीडो, पहलगाम कभी बंद नहीं होता? गृह मंत्रालय इस बारे में कैसे अनजान था? जब स्थानीय पुलिस से खुफिया जानकारी मिली थी कि पर्यटकों को आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाए जाने की संभावना है, तो गृह मंत्रालय ने उचित सुरक्षा उपाय क्यों नहीं किए, जिससे पहलगाम में आतंकी हमले को रोका जा सकता था? पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार व गृह मंत्रालय द्वारा खुफिया और सुरक्षा विफलताओं के बारे में किस तरह की आंतरिक जांच की गई है? इसके निष्कर्ष क्या हैं? क्या कोई जिम्मेदारी तय की गई है? युद्धविराम समझौते से भारत सरकार द्वारा प्राप्त किए जाने वाले संभावित अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्य क्या हैं?
एक जिम्मेदार सांसद और जनप्रतिनिधि के रूप में मैं अपने बहादुर सशस्त्र बलों, सैन्य अभियानों और राजनयिक पहलों से देश को मजबूत करने के लिए 10 सुझाव भी देता हूं। रक्षा बजट को दोगुणा किया जाना चाहिए। हमें अपनी सैन्य क्षमताओं, रणनीतिक हथियार विनिर्माण और खरीद को बढ़ाने के लिए अगले 5 वर्षों में जी.डी.पी. का 4 प्रतिशत तक खर्च करना चाहिए, आर्टिफिशियल इंटेलिजैंस, साइबर वारफेयर, मशीन लर्निंग, हाइपर्सनिक्स और रोबोटिक्स सहित नई तकनीकों को अपनाने और सेना में शामिल करना चाहिए। भारतीय वायु सेना में 42 फाइटर स्क्वाड्रन की स्वीकृत ताकत हैं। इनमें वर्तमान में प्रभावी ताकत 29 ही हैं, जिसमें दो मिग -21 स्क्वाड्रन रिटायर हो रहे हैं। इसलिए, हमें अधिक लड़ाकूजेट्स की आवश्यकता है, जिसमें हमारी रक्षा प्रणाली मजबूत हो। सरकार को गंभीरता से एक अलग मानव रहित हवाई प्रणाली और ड्रोन कॉर्प्स को बढ़ाते हुए और हमारे सैन्य ड्रोन और मानव रहित हवाई प्रणालियों के निर्माण क्षमताओं का विस्तार करना चाहिए। सशस्त्र बलों को हमारी अंतरिक्ष क्षमताओं का विस्तार करना चाहिए, जिसमें मिसाइल ट्रैकिंग, एंटी-सैटेलाइट हथियार, अंतरिक्ष आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और खुफिया, निगरानी तथा अंतरिक्ष आधारित परिसंपत्तियों से टोही शामिल हैं। कांग्रेस द्वारा स्वीकृत माऊंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स जो पिछले 11 वर्षों से अधर में लटकी है, उसे हमारे हिमालयवर्ती क्षेत्र के लिए भी दोबारा से शुरू कर कार्यान्वित किया जाना चाहिए। सशस्त्र बलों के लिए फौरी तौर से विशेष भर्ती ड्राइव लागू करनी चाहिए। वर्तमान में, हमारे सशस्त्र बलों में 1,75,000 खाली पदों (मार्च 2023 को 1.55 लाख खाली पड़े पदों के बाद खुलासा नहीं किया गया है)। को फौरन भरा चाहिए। हमें इन रिक्तियों को पहली प्राथमिकता के रूप में भरने के लिए अगले 12 महीनों की विशेष भर्ती ड्राइव चलानी चाहिए। इसी प्रकार से केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के लिए भी खाली पड़े पदों को भरना आवश्यक है। वर्तमान में अर्धसैनिक बलों में कुल 84 हजार पद खाली पड़े हैं, जिसमें बी.एस.एफ., इंडो-तिब्बती सीमावर्ती पुलिस, सशस्त्र सीमा बल, असम राइफल आदि शामिल हैं। सेना में ठेके पर अग्निवीर की भर्ती 4 साल की अवधि के लिए करवाने से हमारे बहादुर सशस्त्र बलों के प्रशिक्षण और पराक्रम से समझौता किया गया है। पैसे बचाने की मंशा और झूठे अहंकार के वशीभूत होने की बजाय हमें नेशन फस्र्ट का चयन करना चाहिए और भविष्य में अग्निवीर की स्कीम को खत्म करके उसे नियमित भर्ती में बदलना होगा। हमें एक ऐसा राष्ट्रीय सैन्य सिद्धांत रखना होगा, जिसमें दो फ्रंट पर यानी पाकिस्तान व चीन की चुनौती से इक_ा लड़ा जा सके। पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ की एक झलक हमने ऑप्रेेशन सिंदूर के दौरान भी देखी है। मल्टी डोमेन संघर्ष परिदृश्य एक वास्तविक संभावना है और सभी तैयारियों को उसी के लिए किया जाना चाहिए। हमें वैश्विक स्तर पर हमारे संचारतंत्र को मजबूत करना चाहिए। भारत सरकार को विपक्ष के बीच विशेषज्ञों और टिप्पणीकारों की पहचान करनी चाहिए, ताकि ये रणनीतिक डोमेन विशेषज्ञ ऐसे राष्ट्रीय अभियानों के दौरान देश की बात रख सकें। मुझे उम्मीद है कि सरकार राष्ट्रीय हित और पक्षपात रहित भावना से इन रचनात्मक सुझावों पर विचार करेगी।

*रणदीप सिंह सुर्जेवाला, सांसद

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