*हरियाणा कांग्रेस में अब तीन बड़े दलित चेहरे/ तंवर के कांग्रेस में आने से कांग्रेस को फायदा होगा या नुकसान!*
राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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*हरियाणा कांग्रेस में अब तीन बड़े दलित चेहरे/ तंवर के कांग्रेस में आने से कांग्रेस को फायदा होगा या नुकसान!*
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नई दिल्ली ;- हरियाणा के दलित नेता अशोक तंवर ने एक बार फिर पार्टी बदल ली है। विधानसभा चुनाव के बीच उन्होंने भाजपा को बाय-बाय करके कांग्रेस में ‘घर वापसी’ कर ली। साल 2019 में अशोक तंवर ने हरियाणा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पद छिन जाने और विधानसभा चुनाव टिकट वितरण में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ज्यादा तव्वजो देने का आरोप लगा पार्टी छोड़ी थी। अशोक तंवर ने अपना भारत मोर्चा नाम से एक संगठन बनाया। इसके बाद ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। तृणमूल को अलविदा कर फिर आम आदमी पार्टी का दामन थामा। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले आप पार्टी को झटका देते हुए बीजेपी में शामिल हुए। लोकसभा चुनाव के 6 महीने के भीतर ही तंवर का मन भगवा पार्टी से भी भर गया औऱ वह कांग्रेस में शामिल हो गए। अशोक तंवर के यूं धड़ाधड़ दल बदलने से एक सवाल उठ रहा हैं कि वे ऐसा किसी मजबूरी में कर रहे हैं या फिर ‘सर्वेसर्वा’ बनने की उनकी महत्वाकांक्षा उन्हें कहीं टिकने नहीं देती।
2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपने आदमियों को टिकट न मिलने पर बिफरे अशोक तंवर ने सोनिया गांधी के घर के बाहर अपने समर्थकों के साथ खूब हंगामा किया था। फिर उन्होंने सोनिया गांधी को ही एक लंबा-चौड़ा पत्र लिख पार्टी को अलविदा कह दिया। पार्टी छोड़ने के बाद राजस्थान में अपना भारत मोर्चा की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कांग्रेस को ब्लैकमेलर्स की पार्टी तक बता दिया। तब तंवर ने कहा था, ‘कांग्रेस ब्लैकमेलर्स की पार्टी बन गई है. यह लॉयलिस्ट की पार्टी नहीं है।
*कभी राहुल गांधी के थे करीबी*
कभी कांग्रेस में अशोक तंवर की गिनती राहुल गांधी के खासमखास में होती थी। राहुल गांधी ने ही उन्हें हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के न चाहने पर भी कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बनाया था। लेकिन, कुछ समय बाद ही अशोक तंवर और हुड्डा में खटपट होने लगी. पार्टी में वर्चस्व को लेकर भूपेंद्र हुड्डा और अशोक तंवर में विवाद इतना बढ़ा की दिल्ली में राहुल गांधी के एक कार्यक्रम में दोनों के समर्थक भिड़ गए और इस भिड़ंत में अशोक तंवर के सिर में चोट लगी थी। इसके बाद भूपेंद्र हुड्डा ने अशोक तंवर को प्रदेशाध्यक्ष पद से हटाकर ही दम लिया. इससे तंवर खूब चिढे और विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ दी।
*अशोक तंवर ने क्यों की घर वापसी?*
लोकसभा चुनाव हारने के बाद अशोक तंवर हरियाणा विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन, लोकसभा चुनाव में बुरी तरह मात खाए तंवर को बीजेपी ने टिकट नहीं दी न ही संगठन में कोई अहम पद दिया। इससे अशोक तंवर की महत्वाकांक्षा को करारा झटका लगा। बीजेपी में ‘पूरी तव्वजो’ न मिलने और हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ‘अच्छी संभावना’ देख अशोक तंवर ने अब ‘मौके पर चौक्का’ मारा है। हालांकि कांग्रेस में अशोक तंवर की दाल क्या इस बार भी हुड्डा गलने देंगे, यह देखने वाली बात होगी। हरियाणा में कांग्रेस के दलित सबसे दिग्गज चेहरे कुमारी शैलजा को भी अभी भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मुकाबला करने में ‘खूब पसीना’ बहाना पड़ रहा है।
*अब कांग्रेस में तीन बड़े दलित चेहरे*
हरियाणा विधानसभा चुनाव की वोटिंग से दो दिन पहले अशोक तंवर की कांग्रेस में एंट्री से कांग्रेस को थोड़ा बहुत फायदा ही होगा, नुकसान नहीं। अशोक तंवर को कांग्रेस में शामिल करके पार्टी विरोधियों द्वारा उस पर दलित नेताओं की उपेक्षा करने के लगाए जा रहे आरोपों का जवाब भी तगड़े तरीके से दे पाएगी। अशोक तंवर के पार्टी में आने के बाद अब हरियाणा में कांग्रेस के पास तीन बड़े दलित नेता- सांसद कुमारी शैलजा, प्रदेशाध्यक्ष उदयभान और अशोक तंवर हो गए हैं।