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नाड़ी-ज्योतिष

मनोज कुमार शर्मा

 पाराशरीय सिद्धांत के अनुसार वर्ग-कुण्डलियों में जहाँ षष्टियांश समाप्त होता है । वहां से नाड़ी-ज्योतिष आरम्भ होता है । 

षष्टियांश एक राशि में 60 होते हैं और नाड़ियां एक राशि में 150 होती हैं ।

एक षष्टियांश लगभग 2 मिनिट का होता है – जबकि एक नाड़ी लगभग 45 सैकेंड की होती है । इससे – इसके फलकथन में और सूक्ष्मता आती है । 

प्रत्येक षष्टियांश का एक स्वामी होता है – उसी तरह प्रत्येक नाड़ी का भी एक स्वामी है । इन्ही स्वामियों के अनुसार षष्टियांश और नाड़ी का फल होता है । 

नाड़ी की विशेषता ये है कि – वो वर्ग-कुंडली से आगे जाकर और गहराई से फलकथन करती है । 45 सैकेंड की नाड़ी अपने अग्र-भाग से एक फल करती है और पृष्ठ-भाग से दूसरा फल करती है । इस तरह उसकी फलकथन की क्षमता और तीक्ष्ण हो जाती है और, और गहरी हो जाती है । लेकिन ये पाराशर के सिद्धांत को ही आगे बढ़ाती दृष्टिगोचर होती है । इसके अतिरिक्त इसमें और कोई विशेष बात मुझे दिखाई नही दी । 

आप इसे वर्ग-कुंडली का विस्तार कह सकते हैं ? 

आप इसे पाराशर की वर्ग-कुंडली की एक शाखा कह सकते हैं ?

आगे चलकर ऐसा भी हो सकता है कि – मूल जन्म-लग्न-कुण्डली के साथ नाड़ी-कुण्डली भी लगाई जाये ताकि फलकथन में ज्यादा पैनापन लाया जाये । जैसे – नवांश, दशमांश आदि वर्ग-कुंडलियाँ लगाई जाती है ।

बहरहाल – ज्योतिष सीखने वाले इसे वैदिक-ज्योतिष के एक उपकरण के तौर पर लें और इसके विषय में भ्रांतियां ना पालें । थोड़ा सा पाराशर की वर्ग-कुंडलियों का अभ्यास कीजिये और जब सूत्र समझ में आ जाये तो नाड़ी-ज्योतिष को सीखने का प्रयास करें । ज्यादा देर नही लगेगी आपको सीखने में ।  हालांकि – कुछ लोग इसके विषय में हौव्वा खड़ा करते हैं और इसे वैदिक ज्योतिष से अलग ग्रंथ बताकर भ्रांतियाँ फैलाते हैं । ऐसे लोगों से आप नाड़ी-ज्योतिष के विषय मे कुछ बताने को कहो तो – वो लोग वैदिक-ज्योतिष का हवाला देने लगते हैं और नाड़ी-ज्योतिष की बात गोल कर जाते है

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