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चंडीगढ़ प्रशासन में केवल एडवाइजर का पदनाम बदलकर हुआ मुख्य सचिव! / बाकी पदों का अब तक क्यों नहीं बदला गया पदनाम?*

राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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चंडीगढ़ प्रशासन में केवल एडवाइजर का पदनाम बदलकर हुआ मुख्य सचिव! / बाकी पदों का अब तक क्यों नहीं बदला गया पदनाम?*
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चंडीगढ़ (रमेश गोयत) ;- केंद्र सरकार द्वारा 3 जनवरी 2025 को जारी गजट अधिसूचना के तहत चंडीगढ़ में प्रशासनिक ढांचे में बदलाव किया गया था। इस अधिसूचना में एडवाइज़र को मुख्य सचिव का दर्जा देने का निर्णय लिया गया, लेकिन इसके तहत अन्य 10 महत्वपूर्ण पदों पर भी पुनर्विचार किया जाना था। अब तक इन पदों पर कोई ठोस आदेश जारी नहीं हुआ है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि 3 महीने गुजरने के बाद भी क्या अधिसूचना केवल मुख्य सचिव के लिए थी या फिर अन्य पदों की नियुक्ति में देरी के पीछे कोई प्रशासनिक या राजनीतिक कारण है?

अधिसूचना में क्या था?
कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के अंतर्गत कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा जारी इस अधिसूचना के अनुसार, भारतीय प्रशासनिक सेवा (संवर्ग पद संख्या का नियतन) विनियमावली, 1955 में संशोधन किया गया। इस संशोधन में चंडीगढ़ प्रशासन के अंतर्गत निम्नलिखित पदों के पुनर्गठन की बात कही गई थी:

सचिव (गृह)

सचिव (वित्त)

सचिव (नगर नियोजन – स्मार्ट सिटी)

उपायुक्त (जिला)

संयुक्त सचिव (वित्त)

आबकारी आयुक्त

सचिव (अन्य विभाग)

अपर सचिव

अपर उपायुक्त (1)

अपर उपायुक्त (2)

हालांकि, मुख्य सचिव की नियुक्ति के बाद बाकी पदों पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया, जिससे प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लग रहा है।

समाजसेवी और आरटीआई कार्यकर्ता आर.के. गर्ग की प्रतिक्रिया
आरटीआई कार्यकर्ता आर.के. गर्ग ने इस मामले को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “मुख्य सचिव की नियुक्ति तो कर दी गई, लेकिन अन्य महत्वपूर्ण पदों पर अभी तक कोई ठोस आदेश क्यों नहीं जारी किया गया? क्या यह अधिसूचना केवल मुख्य सचिव के लिए ही थी? अन्य पदों पर भी तुरंत निर्णय लिया जाना चाहिए ताकि प्रशासनिक कार्यों में गति लाई जा सके।”

क्या है देरी का कारण?
विशेषज्ञों का मानना है कि चंडीगढ़ प्रशासन और केंद्र सरकार के बीच समन्वय की कमी के कारण इन नियुक्तियों में देरी हो रही है। कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि राजनीतिक कारणों से इन पदों की नियुक्तियों को टाला जा रहा है।

संभावित कारण:

राजनीतिक दबाव: कुछ राजनीतिक दल इन नियुक्तियों में हस्तक्षेप कर सकते हैं, जिससे प्रक्रिया धीमी हो सकती है।
प्रशासनिक खींचतान: चंडीगढ़ प्रशासन और केंद्र सरकार के बीच समन्वय की कमी के चलते भी देरी संभव है।

वित्तीय और नीतिगत अड़चनें: नए पदों के लिए वित्तीय और प्रशासनिक नीति संबंधी कुछ निर्णय लंबित हो सकते हैं।
*आरटीआई दाखिल कर मांगा गया जवाब*
समाजसेवियों और आरटीआई कार्यकर्ताओं ने इस मामले को उठाने का फैसला किया है। आर.के. गर्ग ने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत सरकार से जवाब मांगा है कि बाकी पदों पर अब तक आदेश क्यों नहीं जारी किए गए।
*क्या होगा आगे?*
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चंडीगढ़ प्रशासन इस मामले में कब तक कार्रवाई करता है और क्या केंद्र सरकार इस पर कोई सफाई देती है। इस देरी के कारण प्रशासनिक कार्यों में प्रभाव पड़ सकता है, जिससे शहर के विकास और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर असर पड़ेगा। यदि जल्द ही इन नियुक्तियों पर निर्णय नहीं लिया गया, तो यह मामला और भी विवादित हो सकता है।

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