*राज्यसभा में भारतीय संविधान के 75वें साल में विशेष चर्चा पर सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला, का काबिले तारीफ संबोधन*
राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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*राज्यसभा में भारतीय संविधान के 75वें साल में विशेष चर्चा पर सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला, का काबिले तारीफ संबोधन*
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1. संविधान क्या है?
• क्या संविधान एक किताब का नाम है?
• क्या संविधान पूजा जाने वाला एक ग्रंथ है?
• क्या संविधान हाथी पर रखकर झाँकी निकालने वाला शास्त्र है?
2. सच्चाई यह है कि कोई कुंठित व दुर्भावनाग्रस्त व्यक्ति ही संविधान को ग्रंथ या शास्त्र बनाकर हाथी की सवारी निकाल जनता को भ्रमित करने का षडयंत्र कर सकता है।
3. तो संविधान है क्या?
जैसा बाबा साहब अंबेडकर ने भी संविधान के बारे कहा था कि…
• संविधान तो समानता है, यानी सबके लिए बराबरी का अधिकार है।
• संविधान तो आज़ादी है, यानी बोलने-सोचने-देखने- पहनने-खाने पीने-विरोध करने- असहमत होने विचार व्यक्त करने की आज़ादी ।
• संविधान तो न्याय है, यानी बड़े-छोटे, ऊँचे-नीचे, अमीर और गरीब के भेदभाव से ऊपर उठकर सबके लिए बराबरी का न्याय ।
• संविधान तो भाईचारा है, यानी धर्म और जाति की नफरतों और विभाजनों से ऊपर उठकर प्रेम-सद्भाव-सदाचार का भाईचारा।
4. संविधान के 74 सालों पर चर्चा के लिए, संविधान के मायने जानना सबसे जरूरी है।
• क्योंकि सत्ता के हीरों का मुकुट पहने और धनपतियों द्वारा भेंट में दिया सोने का डंडा पकड़े बादशाह आज संविधान के मायने भूल बैठे हैं।
• सत्ता के सिंहासन और बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठे लोगों के लिए आज की तारीख में संविधान के क्या मायने हैं:-
वो ‘राज के तंत्र’ यानी सत्ता हथियाने और सरकार बनाने को ही संविधान मान बैठे हैं,
पर देश के लिए गरीब की मुसीबतों और जनता की ज़रूरतों के आगे सत्ता की जवाबदेही निश्चित करने वाला प्रजातंत्र ही संविधान है।
वो चंद अमीरज़ादों और दोस्त धन्नासेठों की दौलत लाखों गुना बढ़ाने को ही संविधान मान बैठे हैं,पर देश के लिए गरीबी हटाना, न्याय करवाना और सबको बराबरी का दर्जा दिलवाना ही संविधान है।
वो टीवी पर सुर्खियाँ बनाने वाली जोर-जोर से बोलती आवाजों को ही संविधान मान बैठे हैं,
पर देश के लिए टीवी के प्रायोजित शोर की बजाय वीणा की टंकार सी बजने वाली जनता की आत्मा की आवाज ही संविधान है।
वो ED – CBI Income Tax के डंडा तंत्र से विरोधियों को झुकाने और चुनी सरकारें गिराने को ही संविधान मान बैठे हैं,
पर देश के लिए नैतिकता, बहुमत, और ईमानदारी की कसौटी पर सत्ता व शासन का खरा उतरना ही संविधान है।
वो सरकारी खर्चे पर दुनिया घूमने, इश्तेहार छपवाने, कपड़े बदलने और दूसरों को नीचा दिखा कहकहे लगाने के अधिकार को ही संविधान मान बैठे हैं,
पर देश के लिए जूती गाँठने वाले गरीब, बोझ ढोने वाले कुली, मोटर रिपेयर वाले मिस्त्री, ट्रक चलाने वाले ड्राईवर, अनाज पैदा करने वाले किसान की आवाज को बुलंद करना ही संविधान है।
वो साधु का छद्म भेष धारण कर, अहंकारी ताकत के नशे में मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा को कुचल देने की क्षमता को ही संविधान मान बैठे हैं,पर देश के लिए तो पक्षीराज जटायु की तरह न्याय व कर्तव्य के बोध के लिए कुर्बानी दे देना ही संविधान है।
5. आजकल संविधान के नाम पर बड़े-बड़े लोगों द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को गाली देना, लांछन लगाना, दोष देना फैशनेबल हो गया है।
• काश, वे सब लोग कांग्रेस को पानी पी पीकर कोसने से पहले संविधान सभा में बाबा साहब अंबेडकर के 25 नवंबर, 1949 के भाषण को पढ़ लेते, जो उन्होंने संविधान की एडॉप्शन से ठीक एक दिन पहले दिया था। उनकी आँखें भी खुल जातीं, और दिमाग के दरवाजे भी। प्रधानमंत्री जी ने भी दो दिन पहले इसी भाषण का एक हिस्सा लोकसभा में पढ़कर सुनाया था।
• अंबेडकर जी ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में कहा कि, “संविधान सभा में आते हुए आरक्षित जातियों के हितों की रक्षा करने के अलावा मेरी कोई बड़ी आकांक्षा नहीं थी। इससे बड़ी जिम्मेदारी के काम के लिए मुझे आमंत्रित किया जाएगा इसका मुझे थोड़ा भी अहसास नहीं था। मसौदा समिति में मुझे चुना गया तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। मसौदा समिति के अध्यक्ष पद के लिए जब मुझे चुना गया तब तो मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना ही नहीं रहा।”
अंबेडकर जी का यह इशारा पंडित नेहरू और सरदार पटेल की ओर था।
• अंबेडकर जी ने आगे कहा, “विधानसभा के अंदर कांग्रेस पार्टी की मौजूदगी से अराजकता की यह संभावना शून्य हो गई, जिसने इसकी कार्यवाही में व्यवस्था और अनुशासन की भावना लाई। कांग्रेस पार्टी के अनुशासन की वजह से ही मसौदा समिति संविधान को विधानसभा में पेश करने में सक्षम हुई, जिसमें प्रत्येक अनुच्छेद और प्रत्येक संशोधन के भाग्य के बारे में निश्चित जानकारी थी। इसलिए, विधानसभा में संविधान के मसौदे के सुचारू रूप से चलने का सारा श्रेय कांग्रेस पार्टी को जाता है।”
6. बाबा साहब अंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 के संविधान सभा के संबोधन में तीन चिंताओं का जिक्र किया। मुझे लगता है कि उन्होंने वो चिंताएं आज के शासकों और सरकारों के लिए ही व्यक्त की थीं।
• आज़ादी के 75 वें साल में बाबा साहब की इन तीनों चिंताओं को पुनः जानना, परखना व इनसे सबक लेना ज़रूरी है।
7. अंबेडकर जी की पहली चिंताः-
धर्म से ऊपर देश रखेंगे या धर्म को देश से ऊपरः
• अंबेडकर जी ने कहा कि, “यह चिंता इस तथ्य के अहसास से और भी बढ़ जाती है कि जाति और धर्म के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के अलावा हमारे पास कई राजनीतिक दल होंगे, जिनके राजनीतिक धर्म अलग-अलग और विरोधी होंगे। क्या भारतीय देश को अपने धर्म से ऊपर रखेंगे या धर्म को देश से ऊपर रखेंगे? मुझे नहीं पता। लेकिन इतना तो तय है कि अगर दल धर्म को देश से ऊपर रखेंगे, तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी और शायद हमेशा के लिए खो जाएगी।”
• आज देश में क्या हो रहा है? क्या आज संविधान और देश को दरकिनार कर केवल सत्ता के लिए देश को सांप्रदायिक झगड़ों और नफरत की आग में नहीं झोंक दिया जा रहा?
सत्ता की शहतीरों पर बैठे मुखिया जब ‘श्मशान बनाम कब्रिस्तान’ की बात करें, ‘मटन-मंगलसूत्र-मुजरे’ को अपना चेहरा बनाएं, ‘कपड़ों और टोपी’ से लोगों की पहचान करवाएं, बच्चों की संख्या की गिनती से देश की नीतियाँ चलवाएं, दीपावली, रमजान और क्रिसमस का टकराव करवाएं, तो फिर बताएं कि क्या बाबा साहब की चेतावनी से सीख लेने की जरूरत है या नहीं।
8. अंबेडकर जी की दूसरी चिंताः-
राजनीति में भक्ति या नायक पूजा निश्चित रूप से पतन और अंततः तानाशाही का ही मार्ग हैः
• 25 नवंबर, 1949 को अंबेडकर जी ने फिर कहा था कि “यह सावधानी भारत के मामले में किसी भी अन्य देश की तुलना में कहीं अधिक आवश्यक है। क्योंकि भारत में, भक्ति या जिसे भक्ति का मार्ग या नायक-पूजा कहा जा सकता है, उसकी राजनीति में एक ऐसी भूमिका निभाती है, जो दुनिया के किसी भी अन्य देश की राजनीति में निभाई जाने वाली भूमिका से बेजोड़ है। धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकती है। लेकिन राजनीति में भक्ति या नायक-पूजा निश्चित रूप से पतन और अंततः तानाशाही का मार्ग है।”
• पिछले 10 साल में हमने देखा कि एक व्यक्ति की पूजा और अंधभक्ति से किस प्रकार संस्थाएं मरती रहीं, मर्यादाएं गिरती रहीं, व एक छत्रवाद तथा तानाशाही बढ़ती रही। इसके कुछ उदाहरण मैं देना चाहूँगाः-
⇒ एक व्यक्ति ने कहा कि किसान को लागत + 50 प्रतिशत मुनाफा मिलेगा, और साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। नतीजा हुआ तो कुछ नहीं, उल्टा सरकार बनते ही किसानों के उचित मुआवज़ा कानून को खत्म करने का अध्यादेश लाए। फिर किसान विरोधी तीन काले कानून लाए। 700 किसानों की शहादत हुई और आज भी किसान न्याय मांगने दिल्ली आने के लिए सिसक रहा है, अश्रु गैस व पुलिस के डंडे खा रहा है।
⇒ एक व्यक्ति ने कहा कि नोटबंदी लाउंगा, व कालाधन, नकली नोट और उग्रवाद 50 दिन में खत्म करवाउंगा। नतीजा न कालाधन खत्म हुआ, न नकली नोट और न ही उग्रवाद व नक्सलवाद। हाँ, अर्थव्यवस्था अवश्य खत्म हो गई।
⇒ एक व्यक्ति ने कोरोना में बगैर सोचे-समझे लॉकडाउन लगाया। फिर कहा थालियाँ बजाओ, मोबाईल की लाईट जलाओ, और कोरोना जादू से खत्म। नतीजा गंगा मैय्या लाशों से पट गईं, लाखों लोग ऑक्सीजन और दवाईयों के बगैर मर गए, और करोडों रोजगार खोकर सैकड़ों किलोमीटर पैदल गाँव लौट गए।
एक व्यक्ति ने कहा कि रात के 12 बजे संसद में घंटी बजाओ, जीएसटी लाओ और अर्थव्यवस्था आगे ले जाओ। नतीजा जीएसटी आम व्यवसायी के लिए गब्बर सिंह टैक्स बन गई और सरकारी वसूली का सबसे बड़ा तरीका।
⇒
एक व्यक्ति ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स लाएंगे और पारदर्शिता बनाएंगे। नतीजा पारदर्शिता तो दूर, यह देश और दुनिया की सबसे बड़ी ‘चंदा दो-धंधा लो’ स्कीम बन गई।
⇒ एक व्यक्ति ने कहा कि चुराज्यसभा में भारतीय संविधान के 75वें साल में विशेष चर्चा पर रणदीप सिंह सुरजेवाला, सांसद का संबोधनः
1. संविधान क्या है?
• क्या संविधान एक किताब का नाम है?
• क्या संविधान पूजा जाने वाला एक ग्रंथ है?
• क्या संविधान हाथी पर रखकर झाँकी निकालने वाला शास्त्र है?
2. सच्चाई यह है कि कोई कुंठित व दुर्भावनाग्रस्त व्यक्ति ही संविधान को ग्रंथ या शास्त्र बनाकर हाथी की सवारी निकाल जनता को भ्रमित करने का षडयंत्र कर सकता है।
3. तो संविधान है क्या?
जैसा बाबा साहब अंबेडकर ने भी संविधान के बारे कहा था कि…
• संविधान तो समानता है, यानी सबके लिए बराबरी का अधिकार है।
• संविधान तो आज़ादी है, यानी बोलने-सोचने-देखने- पहनने-खाने पीने-विरोध करने- असहमत होने विचार व्यक्त करने की आज़ादी ।
• संविधान तो न्याय है, यानी बड़े-छोटे, ऊँचे-नीचे, अमीर और गरीब के भेदभाव से ऊपर उठकर सबके लिए बराबरी का न्याय ।
• संविधान तो भाईचारा है, यानी धर्म और जाति की नफरतों और विभाजनों से ऊपर उठकर प्रेम-सद्भाव-सदाचार का भाईचारा।
4. संविधान के 74 सालों पर चर्चा के लिए, संविधान के मायने जानना सबसे जरूरी है।
• क्योंकि सत्ता के हीरों का मुकुट पहने और धनपतियों द्वारा भेंट में दिया सोने का डंडा पकड़े बादशाह आज संविधान के मायने भूल बैठे हैं।
• सत्ता के सिंहासन और बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठे लोगों के लिए आज की तारीख में संविधान के क्या मायने हैं:-
वो ‘राज के तंत्र’ यानी सत्ता हथियाने और सरकार बनाने को ही संविधान मान बैठे हैं,
पर देश के लिए गरीब की मुसीबतों और जनता की ज़रूरतों के आगे सत्ता की जवाबदेही निश्चित करने वाला प्रजातंत्र ही संविधान है।
वो चंद अमीरज़ादों और दोस्त धन्नासेठों की दौलत लाखों गुना बढ़ाने को ही संविधान मान बैठे हैं,पर देश के लिए गरीबी हटाना, न्याय करवाना और सबको बराबरी का दर्जा दिलवाना ही संविधान है।
वो टीवी पर सुर्खियाँ बनाने वाली जोर-जोर से बोलती आवाजों को ही संविधान मान बैठे हैं,
पर देश के लिए टीवी के प्रायोजित शोर की बजाय वीणा की टंकार सी बजने वाली जनता की आत्मा की आवाज ही संविधान है।
वो ED – CBI Income Tax के डंडा तंत्र से विरोधियों को झुकाने और चुनी सरकारें गिराने को ही संविधान मान बैठे हैं,
पर देश के लिए नैतिकता, बहुमत, और ईमानदारी की कसौटी पर सत्ता व शासन का खरा उतरना ही संविधान है।
वो सरकारी खर्चे पर दुनिया घूमने, इश्तेहार छपवाने, कपड़े बदलने और दूसरों को नीचा दिखा कहकहे लगाने के अधिकार को ही संविधान मान बैठे हैं। पर देश के लिए जूती गाँठने वाले गरीब, बोझ ढोने वाले कुली, मोटर रिपेयर वाले मिस्त्री, ट्रक चलाने वाले ड्राईवर, अनाज पैदा करने वाले किसान की आवाज को बुलंद करना ही संविधान है। वो साधु का छद्म भेष धारण कर, अहंकारी ताकत के नशे में मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा को कुचल देने की क्षमता को ही संविधान मान बैठे हैं,पर देश के लिए तो पक्षीराज जटायु की तरह न्याय व कर्तव्य के बोध के लिए कुर्बानी दे देना ही संविधान है।
5. आजकल संविधान के नाम पर बड़े-बड़े लोगों द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को गाली देना, लांछन लगाना, दोष देना फैशनेबल हो गया है।
• काश, वे सब लोग कांग्रेस को पानी पी पीकर कोसने से पहले संविधान सभा में बाबा साहब अंबेडकर के 25 नवंबर, 1949 के भाषण को पढ़ लेते, जो उन्होंने संविधान की एडॉप्शन से ठीक एक दिन पहले दिया था। उनकी आँखें भी खुल जातीं, और दिमाग के दरवाजे भी। प्रधानमंत्री जी ने भी दो दिन पहले इसी भाषण का एक हिस्सा लोकसभा में पढ़कर सुनाया था।
• अंबेडकर जी ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में कहा कि, “संविधान सभा में आते हुए आरक्षित जातियों के हितों की रक्षा करने के अलावा मेरी कोई बड़ी आकांक्षा नहीं थी। इससे बड़ी जिम्मेदारी के काम के लिए मुझे आमंत्रित किया जाएगा इसका मुझे थोड़ा भी अहसास नहीं था। मसौदा समिति में मुझे चुना गया तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। मसौदा समिति के अध्यक्ष पद के लिए जब मुझे चुना गया तब तो मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना ही नहीं रहा।”
अंबेडकर जी का यह इशारा पंडित नेहरू और सरदार पटेल की ओर था।
• अंबेडकर जी ने आगे कहा, “विधानसभा के अंदर कांग्रेस पार्टी की मौजूदगी से अराजकता की यह संभावना शून्य हो गई, जिसने इसकी कार्यवाही में व्यवस्था और अनुशासन की भावना लाई। कांग्रेस पार्टी के अनुशासन की वजह से ही मसौदा समिति संविधान को विधानसभा में पेश करने में सक्षम हुई, जिसमें प्रत्येक अनुच्छेद और प्रत्येक संशोधन के भाग्य के बारे में निश्चित जानकारी थी। इसलिए, विधानसभा में संविधान के मसौदे के सुचारू रूप से चलने का सारा श्रेय कांग्रेस पार्टी को जाता है।”
6. बाबा साहब अंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 के संविधान सभा के संबोधन में तीन चिंताओं का जिक्र किया। मुझे लगता है कि उन्होंने वो चिंताएं आज के शासकों और सरकारों के लिए ही व्यक्त की थीं।
• आज़ादी के 75 वें साल में बाबा साहब की इन तीनों चिंताओं को पुनः जानना, परखना व इनसे सबक लेना ज़रूरी है।
7. अंबेडकर जी की पहली चिंताः-
धर्म से ऊपर देश रखेंगे या धर्म को देश से ऊपरः
• अंबेडकर जी ने कहा कि, “यह चिंता इस तथ्य के अहसास से और भी बढ़ जाती है कि जाति और धर्म के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के अलावा हमारे पास कई राजनीतिक दल होंगे, जिनके राजनीतिक धर्म अलग-अलग और विरोधी होंगे। क्या भारतीय देश को अपने धर्म से ऊपर रखेंगे या धर्म को देश से ऊपर रखेंगे? मुझे नहीं पता। लेकिन इतना तो तय है कि अगर दल धर्म को देश से ऊपर रखेंगे, तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी और शायद हमेशा के लिए खो जाएगी।”
• आज देश में क्या हो रहा है? क्या आज संविधान और देश को दरकिनार कर केवल सत्ता के लिए देश को सांप्रदायिक झगड़ों और नफरत की आग में नहीं झोंक दिया जा रहा?
सत्ता की शहतीरों पर बैठे मुखिया जब ‘श्मशान बनाम कब्रिस्तान’ की बात करें, ‘मटन-मंगलसूत्र-मुजरे’ को अपना चेहरा बनाएं, ‘कपड़ों और टोपी’ से लोगों की पहचान करवाएं, बच्चों की संख्या की गिनती से देश की नीतियाँ चलवाएं, दीपावली, रमजान और क्रिसमस का टकराव करवाएं, तो फिर बताएं कि क्या बाबा साहब की चेतावनी से सीख लेने की जरूरत है या नहीं।
8. अंबेडकर जी की दूसरी चिंताः-
राजनीति में भक्ति या नायक पूजा निश्चित रूप से पतन और अंततः तानाशाही का ही मार्ग हैः
• 25 नवंबर, 1949 को अंबेडकर जी ने फिर कहा था कि “यह सावधानी भारत के मामले में किसी भी अन्य देश की तुलना में कहीं अधिक आवश्यक है। क्योंकि भारत में, भक्ति या जिसे भक्ति का मार्ग या नायक-पूजा कहा जा सकता है, उसकी राजनीति में एक ऐसी भूमिका निभाती है, जो दुनिया के किसी भी अन्य देश की राजनीति में निभाई जाने वाली भूमिका से बेजोड़ है। धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकती है। लेकिन राजनीति में भक्ति या नायक-पूजा निश्चित रूप से पतन और अंततः तानाशाही का मार्ग है।”
• पिछले 10 साल में हमने देखा कि एक व्यक्ति की पूजा और अंधभक्ति से किस प्रकार संस्थाएं मरती रहीं, मर्यादाएं गिरती रहीं, व एक छत्रवाद तथा तानाशाही बढ़ती रही। इसके कुछ उदाहरण मैं देना चाहूँगाः-
⇒ एक व्यक्ति ने कहा कि किसान को लागत + 50 प्रतिशत मुनाफा मिलेगा, और साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। नतीजा हुआ तो कुछ नहीं, उल्टा सरकार बनते ही किसानों के उचित मुआवज़ा कानून को खत्म करने का अध्यादेश लाए। फिर किसान विरोधी तीन काले कानून लाए। 700 किसानों की शहादत हुई और आज भी किसान न्याय मांगने दिल्ली आने के लिए सिसक रहा है, अश्रु गैस व पुलिस के डंडे खा रहा है।
⇒ एक व्यक्ति ने कहा कि नोटबंदी लाउंगा, व कालाधन, नकली नोट और उग्रवाद 50 दिन में खत्म करवाउंगा। नतीजा न कालाधन खत्म हुआ, न नकली नोट और न ही उग्रवाद व नक्सलवाद। हाँ, अर्थव्यवस्था अवश्य खत्म हो गई।
⇒ एक व्यक्ति ने कोरोना में बगैर सोचे-समझे लॉकडाउन लगाया। फिर कहा थालियाँ बजाओ, मोबाईल की लाईट जलाओ, और कोरोना जादू से खत्म। नतीजा गंगा मैय्या लाशों से पट गईं, लाखों लोग ऑक्सीजन और दवाईयों के बगैर मर गए, और करोडों रोजगार खोकर सैकड़ों किलोमीटर पैदल गाँव लौट गए।
एक व्यक्ति ने कहा कि रात के 12 बजे संसद में घंटी बजाओ, जीएसटी लाओ और अर्थव्यवस्था आगे ले जाओ। नतीजा जीएसटी आम व्यवसायी के लिए गब्बर सिंह टैक्स बन गई और सरकारी वसूली का सबसे बड़ा तरीका।
⇒
एक व्यक्ति ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स लाएंगे और पारदर्शिता बनाएंगे। नतीजा पारदर्शिता तो दूर, यह देश और दुनिया की सबसे बड़ी ‘चंदा दो-धंधा लो’ स्कीम बन गई।
⇒ एक व्यक्ति ने कहा कि चुनाव निष्पक्ष करवाएंगे, नतीजा मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया को ही अपनी दासी बना लिया और चुनाव आयोग को अपना पिछलग्गू ।
⇒ एक व्यक्ति ने कहा कि नई संसद बनाएंगे। नतीजा – संसद केवल ईंट और पत्थर की इमारत रह गई क्योंकि संसदीय मर्यादाओं, परंपराओं और पार्लियामेंट्री ओवरसाईट की इमारत को तो गिरा दिया गया।
⇒
एक व्यक्ति ने कहा कि बिज़नेस को बढ़ाएंगे। नतीजा देश की संपत्ति ही एक व्यक्ति के बिज़नेस में बदल डाली। पूरे
⇒
एक व्यक्ति ने कहा कि प्रजातंत्र को मजबूत करेंगे। नतीजा डंडा तंत्र व पैसा तंत्र ने चुनी हुई सरकारों की बलि ले ली, और तानाशाह तंत्र ही प्रजातंत्र हो गया।
⇒ यही बाबा साहब की चेतावनी भी थी।
9. अंबेडकर जी की तीसरी चिंताः-
आर्थिक और सामाजिक असमानता राजनीतिक लोकतंत्र के लिए खतरा है
• 25 नवंबर, 1949 को अंबेडकर जी ने कहा कि “हमें इस तथ्य को स्वीकार करके शुरुआत करनी चाहिए कि भारतीय समाज में दो चीजों का पूर्ण अभाव है। इनमें से एक है समानता। सामाजिक धरातल पर, भारत में एक ऐसा समाज है जो क्रमिक असमानता के सिद्धांत पर आधारित है जो कुछ लोगों के लिए उन्नति और दूसरों के लिए अवनति है। आर्थिक धरातल पर, हमारे पास एक ऐसा समाज है जिसमें कुछ लोगों के पास अपार संपत्ति है जबकि कई लोग घोर गरीबी में रहते हैं… हम कब तक अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता को नकारते रहेंगे? अगर हम इसे लंबे समय तक नकारते रहेंगे, तो हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को खतरे में डाल देंगे।”
• अंबेडकर जी ने जो तीसरी चिंता व्यक्त की थी, वह सत्ता द्वारा मुट्ठीभर लोगों को लाभ पहुँचाने के खिलाफ थी।
आज 140 करोड़ के देश में 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की 40 प्रतिशत संपत्ति है। हम एक बार फिर अंग्रेजों के शासन की आर्थिक असमानता में पहुँच गए हैं। भारत के किसान की आमदनी तो 27 रुपये प्रतिदिन है। पर देश का एक मित्र उद्योगपति 1600 करोड़ प्रतिदिन कमाता है। बड़े-बड़े उद्योगपतियों का 16 लाख करोड़ तो बट्टे खाते में डाला जा सकता है, केवल पिछले 5 साल में उद्योगपतियों का 11 लाख करोड़ बैंक लोन बट्टे खाते में जा सकता है, पर स्कूटर, मोटरसाईकल, कार, ट्रैक्टर और छोटा सा फ्लैट खरीदने वाले मिडिल क्लास, गरीब और किसान की कुर्की के आदेश पारित हो जाते हैं।
• शायद इसीलिए तो कहा जा रहा है कि “देश हमारा, संविधान हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा।”
• मुझे विश्वास है कि आजादी के 75 साल में 140 करोड़ हिंदुस्तानियों में इतनी ताकत है कि वो बाबा साहब अंबेडकर और संविधान निर्माताओं की चिंताओं को व्यर्थ नहीं जाने देगी और एकजुट हो इनका संवैधानिक व प्रजातांत्रिक जवाब देगी।
• यही संविधान की परिपाटी है और यही वक्त की मांग।
जय संविधान !नाव निष्पक्ष करवाएंगे, नतीजा मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया को ही अपनी दासी बना लिया और चुनाव आयोग को अपना पिछलग्गू ।
⇒ एक व्यक्ति ने कहा कि नई संसद बनाएंगे। नतीजा – संसद केवल ईंट और पत्थर की इमारत रह गई क्योंकि संसदीय मर्यादाओं, परंपराओं और पार्लियामेंट्री ओवरसाईट की इमारत को तो गिरा दिया गया।
⇒
एक व्यक्ति ने कहा कि बिज़नेस को बढ़ाएंगे। नतीजा देश की संपत्ति ही एक व्यक्ति के बिज़नेस में बदल डाली। पूरे
एक व्यक्ति ने कहा कि प्रजातंत्र को मजबूत करेंगे। नतीजा डंडा तंत्र व पैसा तंत्र ने चुनी हुई सरकारों की बलि ले ली, और तानाशाह तंत्र ही प्रजातंत्र हो गया।
⇒ यही बाबा साहब की चेतावनी भी थी।
9. अंबेडकर जी की तीसरी चिंताः-
आर्थिक और सामाजिक असमानता राजनीतिक लोकतंत्र के लिए खतरा है।
• 25 नवंबर, 1949 को अंबेडकर जी ने कहा कि “हमें इस तथ्य को स्वीकार करके शुरुआत करनी चाहिए कि भारतीय समाज में दो चीजों का पूर्ण अभाव है। इनमें से एक है समानता। सामाजिक धरातल पर, भारत में एक ऐसा समाज है जो क्रमिक असमानता के सिद्धांत पर आधारित है जो कुछ लोगों के लिए उन्नति और दूसरों के लिए अवनति है। आर्थिक धरातल पर, हमारे पास एक ऐसा समाज है जिसमें कुछ लोगों के पास अपार संपत्ति है जबकि कई लोग घोर गरीबी में रहते हैं… हम कब तक अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता को नकारते रहेंगे? अगर हम इसे लंबे समय तक नकारते रहेंगे, तो हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को खतरे में डाल देंगे।”
• अंबेडकर जी ने जो तीसरी चिंता व्यक्त की थी, वह सत्ता द्वारा मुट्ठीभर लोगों को लाभ पहुँचाने के खिलाफ थी।
आज 140 करोड़ के देश में 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की 40 प्रतिशत संपत्ति है। हम एक बार फिर अंग्रेजों के शासन की आर्थिक असमानता में पहुँच गए हैं। भारत के किसान की आमदनी तो 27 रुपये प्रतिदिन है। पर देश का एक मित्र उद्योगपति 1600 करोड़ प्रतिदिन कमाता है।
बड़े-बड़े उद्योगपतियों का 16 लाख करोड़ तो बट्टे खाते में डाला जा सकता है, केवल पिछले 5 साल में उद्योगपतियों का 11 लाख करोड़ बैंक लोन बट्टे खाते में जा सकता है, पर स्कूटर, मोटरसाईकल, कार, ट्रैक्टर और छोटा सा फ्लैट खरीदने वाले मिडिल क्लास, गरीब और किसान की कुर्की के आदेश पारित हो जाते हैं।
• शायद इसीलिए तो कहा जा रहा है कि “देश हमारा, संविधान हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा।”
• मुझे विश्वास है कि आजादी के 75 साल में 140 करोड़ हिंदुस्तानियों में इतनी ताकत है कि वो बाबा साहब अंबेडकर और संविधान निर्माताओं की चिंताओं को व्यर्थ नहीं जाने देगी और एकजुट हो इनका संवैधानिक व प्रजातांत्रिक जवाब देगी।
• यही संविधान की परिपाटी है और यही वक्त की मांग।