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हरियाणा में अस्तित्व बचाने के लिए लड़ाई लड़ती भाजपा और कांग्रेस, भाजपा पर जीत का दबाव तो कांग्रेस के सामने जीतने का मौका, दोनो दलों की मुश्किल में नांव!*

राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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हरियाणा में अस्तित्व बचाने के लिए लड़ाई लड़ती भाजपा और कांग्रेस, भाजपा पर जीत का दबाव तो कांग्रेस के सामने जीतने का मौका, दोनो दलों की मुश्किल में नांव!*
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चंडीगढ़ ;- हरियाणा में जाटों के गढ़ के नाम से मशहूर सोनीपत और रोहतक तथा जींद लोकसभा सीट पर पूरे राज्य की नजरें हैं। तीनों ही सीट पर कई ऐसे समीकरण बन रहे हैं, जिससे भाजपा और कांग्रेस के बीच रोचक और कांटे का मुकाबला देखने को मिल सकता है। बात करते है हैसियत बचाने की, भाजपा पर जहां अपने प्रदर्शन को दोहराने का दबाव है तो वहीं अपने अस्तित्व बचाने के लिए कांग्रेस के सामने करो या मरो जैसी स्थिति बनी हुई है। सोनीपत और रोहतक कांग्रेस का गढ़ रहा है। रोहतक में कांग्रेस 18 में से 11 बार जीती है। पिछले चुनाव में भाजपा ने दोनों सीटों पर कब्जा किया था। हरियाणा की इन्हीं दो ऐसी सीटों पर कांग्रेस को कम अंतर से हार मिली थी। ऐसे में कांग्रेस को इन दोनों सीटों से ही उम्मीद है। सोनीपत में कांग्रेस के उम्मीदवार व राज्य के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भाजपा सांसद रमेश कौशिक ने करीब एक लाख 64 हजार वोटों से हराया था। वहीं, रोहतक में भाजपा सांसद अरविंद शर्मा ने कांग्रेस के उम्मीदवार दीपेंद्र हुड्डा को मात्र साढ़े सात हजार वोटों से पटखनी दी थी।
सोनीपत और रोहतक में हुड्डा परिवार का अच्छा प्रभाव माना जाता है। पिछले चुनाव की हार हुड्डा परिवार आज तक पचा नहीं पाया और अपनी हार का बदला लेने के लिए हुड्डा परिवार और कांग्रेस ने इस बार पूरा जोर लगा रखा है। वहीं, पीएम मोदी के 400 पार के नारे की वजह से हरियाणा भाजपा पर राज्य की दसों सीट पर कमल खिलाने का दबाव है। दोनों लोकसभा क्षेत्र की 18 विधानसभा सीटों में 12 पर कांग्रेस का कब्जा और भाजपा का सिर्फ चार सीटों पर है। सोनीपत में भाजपा का वोट बैंक बढ़ा है मगर राह आसान नहीं है। सोनीपत लोकसभा सीट पर पिछले तीन चुनावों में भाजपा का वोट बैंक बढ़ा है। इसके बावजूद पार्टी की राह इतनी आसान नहीं है। भाजपा के उम्मीदवार मोहन लाल बड़ौली राई विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। साल 2019 में उन्होंने विधानसभा चुनाव मात्र 2662 वोट से जीता था। पिछले लोकसभा चुनावों में मिले वोट और पीएम मोदी के चेहरे के सहारे वह मैदान में हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 52 फीसदी वोट मिले, वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार को 37 फीसदी से वोट मिले।
हालांकि 5 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों का वोट बैंक खिसका, मगर ज्यादा नुकसान भाजपा को हुआ। इस सीट के अधीन आते नौ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को 33.4 फीसदी वोट मिले जबकि भाजपा को 35 फीसदी। भाजपा ने तीन, कांग्रेस ने पांच और जजपा ने एक सीट जीती। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 27.4 और भाजपा को 35.3 वोट मिले। इन चुनावों के जब विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा और भाजपा का कम हुआ।
पिछले दो ट्रेंड से पता लगता है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट बैंक शेयर बढ़ता है, मगर विधानसभा चुनाव में कम हो जाता है। 2019 के चुनाव में भाजपा ने सात विधानसभा में लीड ली, जबकि दो विधानसभा क्षेत्र खरखौदा और बरोदा से भूपेंद्र सिंह हुड्डा आगे रहे। जिन सात विधानसभा सीट पर भाजपा आगे थी, उनमें जींद जिले की तीन सीटें सफीदों, जींद और जुलाना शामिल हैं। विधानसभा चुनाव में इन तीन सीटों पर जींद से भाजपा, सफीदों से कांग्रेस और जुलाना से जजपा ने जीत हासिल की। हालांकि जींद जिले में प्रभाव रखने वाले चौधरी बीरेंद्र सिंह इस बार कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। ऐसे में बीरेंद्र सिंह इन सीटों पर असर डाल सकते हैं। कांग्रेस के उम्मीदवार पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा।
रोहतक : राजनीतिक राजधानी में डगर दोनों के लिए कठिन
रोहतक को हरियाणा की राजनीतिक राजधानी माना जाता है। पिछले लोकसभा चुनाव में रोहतक में भाजपा उम्मीदवार अरविंद शर्मा को 47 फीसदी और कांग्रेस उम्मीदवार दीपेंद्र हुड्डा को 46.4 फीसदी वोट मिले। दोनों के बीच कांटे की टक्कर हुई। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में इतना कम मार्जिन खास मायने नहीं रखता। रोहतक लोकसभा में नौ विधानसभा सीटें हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने रोहतक, कलानौर, बहादुरगढ़ और कोसली विधानसभा क्षेत्र में बढ़त ली थी। वहीं, कांग्रेस महम, गढ़ी सांपला-किलोई, बादली, झज्जर और बेरी में आगे रही। दीपेंद्र कोसली से 75 हजार वोट से पिछड़ गए थे। दीपेंद्र को 42,845 वोट मिले और अरविंद शर्मा को 1,17,825 वोट मिले। कोसली अहीरवाल बेल्ट से लगती है, जिस पर भाजपा नेता राव इंद्रजीत का प्रभाव है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सात सीटें जीतीं। बाकी दोनों में से एक पर भाजपा व एक निर्दलीय जीता। बीते पांच साल में भाजपा ने हुड्डा के गढ़ में सेंध लगाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। पूर्व सीएम मनोहर लाल रोहतक में सक्रिय रहे हैं। सीएम रहते वह लगातार रोहतक का दौरा करते रहे। साथ ही कई लोगों को भाजपा में शामिल कराया। इनमें पूर्व मंत्री कृष्णमूर्ति हुड्डा भी शामिल हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस पिछली हार से सबक लेते हुए छोटी-छोटी बैठकें कर नॉन जाट वोटों को अपनी ओर खींचने में जुटी है। दीपेंद्र पिछली हार को जज्बात से जोड़कर सहानुभूति बटोरने की कोशिश में भी हैं। रोहतक की जीत से पांच महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भी एक संदेश जाएगा। इसलिए दोनों ही दलों ने रोहतक का चुनाव जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है।
मुकाबला कांटे का किसे मिलेगा आशीर्वाद अभी कहना मुश्किल
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि दोनों ही सीटों पर मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। रोहतक में हार से सबक लेते हुए कांग्रेसी काफी सतर्कता बरत रहे हैं। इस बार वह ओवर कॉन्फिडेंस में नहीं हैं। भाजपा उम्मीदवार अरविंद शर्मा भी मेहनत करने में कोई कमी नही छोड़ रहे हैं।

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