सुप्रीमकोर्ट ने भूपेंद्र हुड्डा सरकार में हुए नियमित कर्मचारियों का फिर मांगा रिकाॅर्ड / लापरवाही बरतने वाले अधिकारीयों की जवाबदेही होगी तय*
राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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सुप्रीमकोर्ट ने भूपेंद्र हुड्डा सरकार में हुए नियमित कर्मचारियों का फिर मांगा रिकाॅर्ड / लापरवाही बरतने वाले अधिकारीयों की जवाबदेही होगी तय*
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चंडीगढ़ ;- पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में वर्ष 2014 की नियमितीकरण नीति के तहत पक्के हुए कर्मचारियों को लेकर सरकार ने फिर सभी विभागों से रिकाॅर्ड मांगा है। कांग्रेस सरकार में लागू हुई नियमितीकरण पाॅलिसी में भेदभाव को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा रहा है। सभी विभागों को शुक्रवार शाम तक अनिवार्य रूप से वांछित जानकारी उपलब्ध कराने को कहा गया है। ऐसा न करने पर जिम्मेदार अधिकारी को खुद सुप्रीम कोर्ट में जवाब देना होगा।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित स्टेट आफ हरियाणा बनाम योगेश त्यागी केस को लेकर मानव संसाधन विभाग ने जानकारी मांगी है कि वर्ष 2014 की नियमितीकरण नीति के तहत कितने कर्मचारियों को स्थायी किया गया, कितनों काे अभी तक पक्का नहीं किया गया और कितनों को अभी पक्का किया जाना है।28 जुलाई को हुई पिछली सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को नवीनतम आंकड़े प्रस्तुत करने को कहा था। हालांकि इससे पहले भी 95 विभागों और बोर्ड-निगमों की ओर से रिपोर्ट महाधिवक्ता कार्यालय को भेजी जा चुकी है। अब अदालत ने दोबारा अपडेट डेटा मांगा है।
सभी प्रशासनिक सचिवों, विभागाध्यक्षों, मंडलायुक्तों और उपायुक्तों को निर्देश दिया गया है कि यदि पुराने आंकड़ों में कोई बदलाव है तो उसे अपडेट करें और तुरंत भेजें। जानकारी न होने की स्थिति में भी ‘शून्य सूचना’ अनिवार्य रूप से भेजनी होगी।सभी विभागों को यह रिपोर्ट मानव संसाधन-1 शाखा को ई-मेल के माध्यम से भेजनी है। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि अगर समय सीमा का पालन नहीं किया गया तो संबंधित अधिकारी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे। अदालत से होने वाले किसी भी प्रतिकूल आदेश की जवाबदेही उसी अधिकारी की होगी जिसने जानकारी देने में लापरवाही बरती।
योगेश त्यागी एवं अन्य की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि प्रदेश सरकार ने 2014 में नियमितीकरण नीति लागू की थी। इसमें लंबे समय से कार्यरत संविदा कर्मचारियों को स्थायी करने का प्रविधान था। कर्मचारियों का दावा है कि नीति लागू करने में भेदभाव हुआ।
कुछ कर्मचारियों ने नीति की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए हैं। इसके बाद सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की। तभी से सुप्रीम कोर्ट में 2014 की नियमितीकरण नीति पर सुनवाई जारी है। अब अदालत यह तय करेगी कि किन संविदा कर्मचारियों को स्थायी किया जाए।

