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*पीजीआई चंडीगढ विशेषज्ञों ने आर्टिफिशियल कॉर्निया बनाने के शोध में सफलता की हासिल / प्रत्यारोपण के बाद बचे टिश्यू से भी बनेगी नई कॉर्निया*

राणा ओबराय
राष्ट्रीय खोज/भारतीय न्यूज,
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*पीजीआई चंडीगढ विशेषज्ञों ने आर्टिफिशियल कॉर्निया बनाने के शोध में सफलता की हासिल / प्रत्यारोपण के बाद बचे टिश्यू से भी बनेगी नई कॉर्निया*
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चंडीगढ़ ;- पीजीआई एडवांस आई सेंटर के विशेषज्ञों ने आर्टिफिशियल कॉर्निया बनाने के शोध में सफलता हासिल की है। आई सेंटर के डॉक्टरों ने कॉर्निया प्रत्यारोपण के बाद बचे हुए रिम (कॉर्निया के आसपास का हिस्सा) के साथ चूहे के कोलेजन को मिलाकर हू-ब-हू प्राकृतिक कॉर्निया जैसी ग्रोथ वाला सेल बनाया है। इसे अब खरगोश में ट्रांसप्लांट कर एनिमल ट्रायल की तैयारी है। इसमें सफलता मिलते ही अगली कड़ी में मानव पर ट्रायल होगा। पीजीआई के एडवांस आई सेंटर की प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर प्रो. मन्नि लूथरा की देखरेख में हुए शोध में कॉर्निया प्रत्यारोपण के बाद बचे हुए हिस्से में अलग-अलग सोल्यूशन के साथ चूहे के कोलेजन का उपयोग कर आर्टिफिशियल कॉर्निया सेल बनाया गया। प्रो. लूथरा ने बताया कि कोलेजन के उपयोग का निर्णय स्थिति के अनुसार किया जाता है। इस तरह के शोध कार्य में चूहा, खरगोश, सूअर के साथ मनुष्यों के कोलेजन का भी उपयोग किया जाता है। इस शोध के परिणाम के आधार पर कहा जा सकता है कि आर्टिफिशियल कॉर्निया सेल विकसित कर अब आने वाले दिनों में अगर मानव पर ट्रायल सफल रहा तो कॉर्निया की कमी के कारण अंधेपन से जूझ रहे लोगों की परेशानी को दूर करने में क्रांतिकारी सफलता मिलेगी। कॉर्निया प्रत्यारोपण से निकले कॉर्नियोस्क्लेरल रिम्स का उपयोग संभावित चिकित्सीय अनुप्रयोगों, जैसे कि केराटोप्रोस्थेसिस या पैच के लिए कॉर्निया जैसा ऊतक (सीएलटी) बनाने में किया जा सकता है। इस नवीन विधि में रिम को एक सांचे के रूप में उपयोग करके कोलेजन के बहुलकीकरण को एक डिस्क के आकार के पदार्थ में परिवर्तित किया जाता है जिसे फिर क्रॉसलिंक किया जाता है और उपकला कोशिकाओं के साथ मिलाकर एक ऐसा सीएलटी बनाया जाता है जो प्राकृतिक कॉर्निया जैसा दिखता है। ये सीएलटी प्रत्यारोपण के लिए कॉर्निया सामग्री की कमी को दूर करने में मदद कर सकते हैं।

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